aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "دھان"
दुल्हन बेगम
born.1760
शायर
प्रेम धवन
1923 - 2001
सत्याधार सत्या
born.1989
बद्रीनाथ उपध्याय 'प्रेम धन'
बशेशर प्रदीप
born.1925
लेखक
नफ़ीस दुल्हन
संपादक
धनप्रकाश अग्रवाल
अनुवादक
योगा ध्यान अहूजा
धनपति पाण्डेय
रामधन सुकुल
हाफ़िज़ धामपुरी
ज़िन्दा दिलान-ए-हैदराबाद
पर्काशक
ख़ुश दलान पब्लिकेशन्स, बंगलौर
उर्दू घर धारवाड़, बंगलौर
बिशेशर प्रदीप
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
उसने हंसकर कहा। “अब रात हो गई है, बड़ी अच्छी रात है।” उसने अपना कमज़ोर नन्हा छोटा सा हाथ मेरे दूसरे शाने पर रख दिया और जैसे बादाम के फूलों से भरी शाख़ झुक कर मेरे कंधे पर सो गई।...
बड़ी मुमानी का कफ़न भी मैला नहीं हुआ था कि सारे ख़ानदान को शुजाअ'त मामूँ की दूसरी शादी की फ़िक्र डसने लगी। उठत बैठते दुल्हन तलाश की जाने लगी। जब कभी खाने पीने से निमट कर बीवियाँ बेटियों की बरी या बेटियों का जहेज़ टाँकने बैठतीं तो मामूँ के लिए...
सब गेहूँ धान मुहय्या हैकहीं दौलत के संदूक़ भरे
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैंलड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं
बुत उर्दू क्लासिकी शायरी की मूल शब्दावली में से एक है । इसका शाब्दिक अर्थ मूर्ति या मूरत होता है। उर्दू शायरी में ये महबूब प्रेमिका का रूपक है । जिस तरह बुत कुछ सुनता है न उस पर किसी बात का कोई असर होता है । ठीक उसी तरह उर्दू शायरी का महबूब भी अपने प्रेमी से बे-परवा होता है । आशिक़ की फ़रियाद, उसका रोना, गिड़-गिड़ाना,उसकी आहें सब बेकार चली जाती हैं ।
धानدھان
paddy, rice
Dhan Katne Ke Bad
अनवर अज़ीम
Iqbal Dulhan
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
कि़स्सा / दास्तान
रौशन दान
जावेद सिद्दीक़ी
परिचय
मोती उगे धान के खेत
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
Asan Nazmein
नज़्म
Mashhoor Musalman Sciencedan
ख़्वाजा जमील अहमद
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Hama Dan Tabeeb
हकीम भगत राम
औषधि
Africa Ki Dulhan
सादिक़ हुसैन सरधनवी
ऐतिहासिक
Do Ser Dhan
तकशी शिव शंकर पल्ले
नॉवेल / उपन्यास
Lal Qila Ki Ek Jhalak
नासिर नज़ीर फ़िराक़ देहलवी
शिक्षाप्रद
दुलहन
ख़ान महबूब तरज़ी
रोमांटिक
Sukhandan-e-Faras
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
साहित्य का इतिहास
Dhani Bankain
इस्मत चुग़ताई
ड्रामा/ नाटक
इक़बाल एंड हिज़ इकुअल्स
एम एल धवन
आलोचना
Nasir Kazmi Ek Dhyan
सलाहुद्दीन
जीवनी
لگا دھیان اولاد کا اس کے ساتھجو پھینکیں، تو شکلیں کئی بیٹھیں مل
शाकिरा ने डरते-डरते कहा, “आज बड़े हकीम साहब को बुला लेते। शायद उन्हीं की दवा से फ़ायदा हो।” साबिर हुसैन ने काली घटाओं की तरफ़ देखकर तुर्शी से जवाब दिया, “बड़े हकीम नहीं। लुक़्मान भी आएँ तो इसे कोई फ़ायदा न हो।”...
सहदरी के चौके पर आज फिर साफ़-सुथरी जाज़िम बिछी थी। टूटी-फूटी खपरैल की झिर्रियों में से धूप के आड़े-तिरछे क़त्ले पूरे दालान में बिखरे हुए थे। महल्ले-टोले की औरतें ख़ामोश और सहमी हुई सी बैठी थीं। जैसे कोई बड़ी वारदात होने वाली हो। माँओं ने बच्चे छातियों से लगा लिए...
दूर तक धान के सुनहरे खेत फैले हुए थे जुम्मे का नौजवान लड़का बिंदु कटे हुए धान के पोले उठा रहा था और साथ ही साथ गा भी रहा था; धान के पोले धर धर कांधे...
सब पे तू मेहरबान है प्यारेकुछ हमारा भी ध्यान है प्यारे
वापस आ के वो नहाती है और अपनी साड़ी धोती है और सुखाने के लिए पुल के जंगले पर डाल देती है और फिर एक बेहद ग़लीज़ और पुरानी धोती पहन कर खाने पकाने में लग जाती है। शांता बाई के घर चूल्हा उस वक़्त सुलग सकता है जब दूसरों...
नट बंजारन सन्यासी और खेल-तमाशे वाले लोगखंडर वीराना जलती धूप फूली सरसों धान के खेत
धान हमारे चिड़िया खाएँचिड़ियों को आदत होती होती है
“ओटो... तुम्हारी उम्र कितनी है।” मैंने मुस्कुरा कर पूछा। “मैं इक्कीस साल का हूँ।” उसने बड़े वक़ार से जवाब दिया। “और जब जर्मनी वापस पहुँचूँगा तो बाईस साल का हो जाऊंगा। और उसके अगले साल मुझे डॉक्टरेट मिल जाएगा। मैं यूनीवर्सिटी में जर्मन गिनाइया शायरी का मुता’ला कर रहा हूँ।...
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