aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "زاویہ"
ज़ोया शेख़
born.1992
शायर
ज़ाविया प्रिंट एंड पब्लिकेशन,दिल्ली
पर्काशक
ज़ाविया पब्लिकेशंज़
जाविया क़ादिरया ट्रस्ट, हैदराबाद
जाविया पब्लिशर्स, लाहौर
ज़ोया पब्लिकेशन, कोलकाता
ज़ोया ज़ैदी
संपादक
ज़ोया राव वफ़ा
born.1981
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ मेंपलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
नज़र का ज़ाविया बदला है जब सेमैं कूज़े में समुंदर देखता हूँ
सोचने का ज़ाविया मैं ने बदल डाला है दोस्तअब परेशानी नहीं लगती परेशानी मुझे
जो मैं ने सोच का बदला है ज़ाविया 'नायाब'हर एक चीज़ नज़र क़ाएदे से आई है
मुझ पर इसलिए कि मुझे लिखना पड़ रहा है, आप पर इसलिए कि आपको उसे पढ़ना पड़ रहा है। हालाँके इसमें कोई ऐसी बात नहीं जिसके लिए उसके मुताल्लिक़ इतनी सिरदर्दी मोल ली जाये, मगर क्या किया जाये कालू भंगी की ख़ामोश निगाहों के अंदर इक ऐसी खिंची-खिंची सी मिल्तज्याना...
दोपहर, ज़िन्दगी के कठिन लम्हों और उन से जुड़ी परेशानियों का अलामत होने के साथ कई दूसरे इशारों के तौर पर भी प्रचालित है। सूरज का सर के बिलकुल ऊपर होना शायरों ने अलग-अलग ढंग से पेश किया है। दोपहर शायरी ज़िन्दगी की धूप-छाँव से उपजी वह शायरी है जो हर लम्हा सच की आँच को सहने और वक़्त से आँखें मिला कर जीने का हौसला देती है। आइये एक नज़र धूप शायरी भीः
शायरी की एक बड़ी ख़ूबी ये है कि इसमें शब्दों का अपना अर्थ-शास्त्र होता है । कोई शब्द किसी एक और सामान्य अवधारणा को ही बयान नहीं करता । शायर की अपनी उड़ान होती है वो अपने तजरबे को पेश करने के लिए कभी किसी शब्द को रूपक बना देता है तो कभी अर्थ के विस्थापन में कामयाबी हासिल करता है । कह सकते हैं कि शायर अपने शब्दों के सहारे अपने विचारों को पेंट भी करता है और एक नए अर्थ-शास्त्र तक पहुँचता है । उर्दू शायरी में धूप और दोपहर जैसे शब्दों के सहारे भी नए अर्थ-शास्त्र की कल्पना की गई है ।
ज़ावियाزاوِیَہ
कोण , कोण (रेखागणित)
ज़ाविया-ए-नज़रزاوِیَۂ نَظَر
दृष्टिकोण, नुक्तए नज़र
ज़ाविया बदलनाزاوِیَہ بَدَلْنا
दिशा में परिवर्तन आना, दिशा का बदल जाना
ज़ाविया-ए-निगाहزاوِیَۂ نِگاہ
Zaviya
अशफ़ाक़ अहमद
लेख
Husain Ibn-e-Ali
निकहत शाहजहाँपुरी
इस्लामिक इतिहास
Gulha-e-Dagh
आफ़ताब अहमद सिद्दीक़ी रुदाैलवी
संकलन
Aurangzeb : Ek Naya Zaviya-e-Nazar
ओम प्रकाश प्रसाद
Zaviya-e-Nigah
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
आलोचना
Zaviya Haye Nigah
ज़िया फ़तेहाबादी
Tanqeedi Zaviye
इबादत बरेलवी
Shumara Number-004
जौहर मीर
ज़ाविया
Sir Syed Ke Fikri Zaviye
नफ़ीस बानो
मज़ामीन / लेख
Adabi Zawiye
फ़खरुल इस्लाम आज़मी
Naye Tanqidi Zaviye
खुशहाल ज़ैदी
Sir Syed Shanasi Ke Chand Aham Zaviye
नसीम अब्बास अहमर
शोध
Urdu Novel Ke Chand Ahamd Zaviye
मुमताज़ अहमद ख़ाँ
नॉवेल / उपन्यास तन्क़ीद
मुद्दतों तक पुरख़ार जंगलों, शरर-बार रेगिस्तानों, दुशवार गुज़ार वादियों और ना-क़ाबिल-ए-उबूर पहाड़ों को तय करने के बाद दिल-फ़िगार हिंद की पाक सर-ज़मीन में दाख़िल हुआ। और एक ख़ुश-गवार चश्मे में सफ़र की कुलफ़तें धो कर ग़लबा-ए-माँदगी से लब-ए-जू-ए-बार लेट गया गया। शाम होते वो एक कफ़-ए-दस्त मैदान में पहुँचा जहाँ...
बज़्म का इल्तिज़ाम गर कीजे...
“ये मॉडल टाउन है?” ...
अब चचा चफ़ती से नहीं मापते। सुतली से मापने का इरादा रखते हैं। सीढ़ी पर पैंतालीस दर्जे जा ज़ाविया बना कर सुतली का सिरा कोने तक पहुंचाने की फ़िक्र में हैं कि सुतली हाथ से छूट जाती है। आप लपक कर पकड़ना चाहते हैँ कि इसी कोशिश में ज़मीन पर...
ये न पूछो कि वाक़िआ' क्या हैकिस की नज़रों का ज़ाविया क्या है
बहुत दिनों के बाद कुलसूम ने एक रोज़ उसे बताया कि महमूदा का शौहर जिसका नाम जमील था, क़रीब क़रीब पागल हो गया है। मुस्तक़ीम ने पूछा, “क्या मतलब?”...
इधर कई महीनों से मकान की तलाश में शह्र के बहुत से हिस्सों और गोशों की ख़ाक छानने और कई महल्लों की आब-ओ-हवा को नमूने के तौर पर चखने का इत्तफ़ाक़ हुआ तो पता चला कि जिस तरह हर गली के लिए कम से कम एक कम तौल पंसारी, एक...
एक बुजु़र्गवार अह्ल-ए-क़लम को तो मैं भी जानता हूँ जो बहुत देर तक इस्मत के प्रेम पुजारी रहे। ख़त-ओ-किताबत के ज़रिये से आपने इश्क़ फ़रमाना शुरू किया। इस्मत शह देती रही लेकिन आख़िर में ऐसा अड़ंगा दिया कि सुरय्या ही दिखा दी ग़रीब को। ये सच्ची कहानी मेरा ख़्याल है...
मेरी जान किन औहाम में गिरफ़्तार है। जहाँ से बी.ए कामयाब किया है वहीं से एम.ए.भी कर डाला। डबल कोर्स एक वह्म है, वाहिमा है। अलीगढ़ आने के ख़्याल को दिल से निकाल, तुझको ख़ुदा जीता रखे। मगर इस राह में तेरे महालात-ओ-एहतिमालात को सूरत-ए-वुक़ूई दे। यहां भलों से भी...
टैक्सी देर तक इधर-उधर घूमती रही। दलाल ने जब देखा कि हामिद इंतख़ाब के मुआ’मले में बहुत कड़ा है तो इसने दिल में कुछ सोचा और ड्राईवर से कहा, “शिवा जी पार्क की तरफ़ दबाओ... वो भी पसंद न आई तो क़सम ख़ुदा की भड़वागीरी छोड़ दूंगा।” टैक्सी शिवाजी पार्क...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books