aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ساگ"
अब्दुल अहद साज़
1950 - 2020
शायर
सादुल्लाह शाह
born.1958
सिद्धार्थ साज़
born.1996
सिद्धार्थ सैनी साद
born.2000
अरशद साद रुदौलवी
ताैफ़ीक़ साग़र
रूप साग़र
born.1982
सागर सरहदी
1934 - 2021
लेखक
सुजीत सहगल हासिल
born.1970
शीराज़ सागर
born.1976
ज़फ़र मुजीबी
born.1941
दीपशिखा सागर
born.1973
सागर अकबराबादी
सागर सरफ़राज़
born.1990
इफ़्तिख़ार साग़र
कहानियाँ ही सही सब मुबालग़े ही सहीअगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
जाड़ों की रात थी, फ़ज़ा सन्नाटे में ग़र्क़, सारा गाँव तारीकी में जज़्ब हो गया था। घीसू ने कहा, “मालूम होता है बचेगी नहीं। सारा दिन तड़पते हो गया, जा देख तो आ।”...
पुल के जंगले का सहारा लेकर में एक अरसे से उस का इंतेज़ार कर रहा था। सै पहर ख़त्म हो गई। शाम आ गई, झील वलर को जाने वाले हाऊस बोट, पुल की संगलाख़ी मेहराबों के बीच में से गुज़र गए और अब वो उफ़ुक़ की लकीर पर काग़ज़ की...
हिज्र मुहब्बत के सफ़र का वो मोड़ है, जहाँ आशिक़ को एक दर्द एक अथाह समंदर की तरह लगता है | शायर इस दर्द को और ज़ियादः महसूस करते हैं और जब ये दर्द हद से ज़ियादा बढ़ जाता है, तो वह अपनी तख्लीक़ के ज़रिए इसे समेटने की कोशिश करता है | यहाँ दी जाने वाली पाँच नज़्में उसी दर्द की परछाईं है |
२०२२ ख़त्म हुआ आप लोगों ने उर्दू ज़बान-ओ -अदब और शाइरी से भरपूर मुहब्बत का इज़हार किया है । इस कलेक्शन में हम उन 10 नज़्मों को पेश कर रहे हैं जो रेख़्ता पर सबसे ज़्यादा पढ़ी गईं हैं।
प्रमुख और नई दिशा देने वाले आधुनिक शायर लन्दन के निवासी थे।
सागساگ
spinach
Siyasat Nama
Nizam-ul-Mulk Toosi
संविधान / आईन
Dast-e-Tah-e-Sang
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
काव्य संग्रह
अमृत सागर उर्दू
औषिधि
हयात-ए-वारिस
शैदा वारसी
चिश्तिय्या
Sapna Sa Lage
ख़दीजा ख़ान
ग़ज़ल
Tanhai Ke Sau Saal
उपन्यास
Aath Ratein Saat Kahaniyan
नईमा जाफ़री पाशा
कहानी
Aur Insan Mar Gaya
रामा नन्द सागर
फ़िक्शन
Saz-e-Hayat
आरज़ू लखनवी
संकलन
Ghazal Qaseeda Aur Rubai
मुग़नी तबस्सुम
पाठ्यक्रम
एक ज़ख़म और सही
अशफ़ाक़ अहमद
अफ़साना
Sitara Saz
अख़्तर उस्मान
Iran Mein Jadeed Farsi Adab Ke Pachas Saal
रज़िया अकबर
इतिहास
Urdu Ghazal Ki Tahzeebi wa Fikri Buniyadein
सादुल्लाह कलीम
इक़बालियात के सौ साल
मोहम्मद सुहैल उमर
इंतिख़ाब / संकलन
उस्तुख़्वाँ हड्डी है और है पोस्त खालसग है कुत्ता और गीदड़ है शग़ाल
मसऊद बग़ल में बस्ता दबाये स्कूल जा रहा था। आज उसकी चाल भी सुस्त थी। जब उसने बे खाल के ताज़ा ज़बह किए हुए बकरों के गोश्त से सफ़ेद सफ़ेद धुआँ उठता देखा तो उसे राहत महसूस हुई। उस धुंए ने उसके ठंडे-ठंडे गालों पर गर्म-गर्म लकीरों का एक जाल...
शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ हैनिगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है
मैंने इससे पहले हज़ार बार कालू भंगी के बारे में लिखना चाहा है लेकिन मेरा क़लम हर बार ये सोच कर रुक गया है कि कालू भंगी के मुताल्लिक़ लिखा ही क्या जा सकता है। मुख़्तलिफ़ ज़ावियों से मैंने उसकी ज़िंदगी को देखने, परखने, समझने की कोशिश की है, लेकिन...
پردے سے نہ دایہ نے نکالاپتلی سا نگاہ رکھ کے پالا
जब लोहे के चने चब चुके तो ख़ुदा-ख़ुदा कर के जवानी बुख़ार की तरह चढ़नी शुरू हुई। रग-रग से बहती आग का दरिया उमँड पड़ा। अल्हड़ चाल, नशे में ग़र्क़, शबाब में मस्त। मगर उसके साथ-साथ कुल पाजामे इतने छोटे हो गए कि बालिश्त-बालिश्त भर नेफ़ा डालने पर भी अटंगे...
कलकत्ता में हमारे मुल्क की तरह राशनिंग नहीं है। ग़िज़ा के मुआ’मले में हर शख़्स को मुकम्मल शख़्सी आज़ादी है। वो बाज़ार से जितना अनाज चाहे ख़रीद ले कल ममलिकत टली के कौंसिल ने मुझे खाने पर मदऊ’ किया। छब्बीस क़िस्म के गोश्त के सालन थे। सब्ज़ियों और मीठी चीज़ों...
उसका पसीना ख़ुश्क हो गया था। इसलिए ठहरी हवा उसे कोई ठंडक नहीं पहुंचा रही थी मगर चिमोड़े का ठंडा-ठंडा लज़ीज़ धुआँ उसके दिल-ओ-दिमाग़ में ना-क़ाबिल-ए-बयान सुरूर की लहरें पैदा कर रहा था। अब वक़्त हो चुका था कि घर से उसकी इकलौती लड़की जीनां रोटी लस्सी लेकर आ जाए।...
दो बहनें दो साल बाद एक तीसरे अज़ीज़ के घर मिलीं और ख़ूब रो धोकर ख़ामोश हुईं तो बड़ी बहन रूप कुमारी ने देखा कि छोटी बहन राम दुलारी सर से पांव तक गहनों से लदी हुई है। कुछ उसका रंग खिल गया। मिज़ाज में कुछ तमकनत आगई है और...
माई जीवां ये आग कई मर्तबा सुलगा चुकी है। ये तकिया या छोटी सी ख़ानक़ाह जिसके अंदर बनी हुई क़ब्र की बाबत उसके परदादा ने लोगों को ये यक़ीन दिलाया था कि वो एक बहुत बड़े पीर की आरामगाह है, एक ज़माने से उनके क़ब्ज़े में थी। गामा साईं के...
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