aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سبھی"
बरकत प्रेस, सबज़ी मंडी, इलाहाबाद
पर्काशक
उबैदुर्रहमान सुमभी
लेखक
उर्दू सभा रुड़की
संपादक
काशी नागरी प्रचारणी सभा
नागरी प्रचार सभा, काशी
भगवत भागती सभा, हैदराबाद
बाल अदब सभा, हैदराबाद
जम्मू कश्मीर पंजाबी साहित्य सभा, श्रीनगर
हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा
कायस्थ सदर सभा हिन्द, लखनऊ
श्री चित्रगुप्त सभा, दिल्ली
सभ्या प्रकाशन, नई दिल्ली
कायस्थ उर्दू सभा, देहली
गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, नई दिल्ली
हिन्दुस्तानी प्रचार सभा प्रकाशन
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जातेवर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते
बंदा ओ साहब ओ मोहताज ओ ग़नी एक हुएतेरी सरकार में पहुँचे तो सभी एक हुए
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलोसभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी होतुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो
होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ाजैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशाँ जानाँ
ज्ञानपीठ से पुरस्कृत उर्दू किताबें.
मज़हब पर गुफ़्तुगू हमारी उमूमी ज़िंदगी का एक दिल-चस्प मौज़ू है। सभी लोग मज़हब की हक़ीक़त, इंसानी ज़िंदगी में उस के किरदार, उस के अच्छे बुरे असरात पर सोचते और ग़ौर-ओ-फ़िक्र करते हैं। शायरों ने भी मज़हब को मौज़ू बनाया है उस के बहुत से पहलुओं पर अपनी तख़्लीक़ी फ़िक्र के साथ अपने ख़यालात का इज़हार किया है। ये शायरी औप को मज़हब के हवाले से एक नए मुकालमे से मुतआरिफ़ कराएगी।
किसी बात को जान कर भी अन्जान बने रहने का अन्दाज़ उर्दू शायरी के महबूब की अदा होती है। उसे आशिक़ की मोहब्बत, उसकी कसक और तड़प का बख़ूबी इल्म होता है लेकिन अन्जान बने रहना माशूक़ को रास आता है। चाहने वाले की बेचारगी और तड़प पर मन ही मन में मुस्कुराते रहना तजाहुल शायरी में झलक आता है।
सभीسبھی
all
Indr Sabha Amanat
अमानत लखनवी
रोमांनवी
इंद्र-सभा
Daulat Ke Sabhi Shikari
जेम्स हेडले चेस
अनुवाद
Indr Sabha
Lakhnau Ka Awami Stage
सय्यद मसूद हसन रिज़वी अदीब
नाटक इतिहास एवं समीक्षा
Indr Sabha Aur Indra Sabhaein
इब्राहीम युसूफ़
आलोचना
अाया बसन्त सखी
वाजिदा तबस्सुम
महिलाओं की रचनाएँ
Sari Hindu Janta Aur Hindu Mahasabha Se Puchhne Ki Ek Bat
ख़्वाजा हसन निज़ामी
हिन्दू-मत
Indr Sabha Ek Mutala
अब्दुल हामिद
Amanat Indr Sabha
सभी रंग के सावन
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
Indr Sabha Ki Riwayat
मोहम्मद शाहिद हुसैन
शोध
Lakhnau Ka Auaami Stage
Sabzi Tarkariyan
महबूब आलम
ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थींआँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था
सभी बातें सुनी तुम नेफिर आँखें फेर लीं तुम ने
ऐ शख़्स अब तो मुझ को सभी कुछ क़ुबूल हैये भी क़ुबूल है कि तुझे छीन ले कोई
या'नी तुम वो हो वाक़ई? हद हैमैं तो सच-मुच सभी को भूल गया
अब नहीं कोई बात ख़तरे कीअब सभी को सभी से ख़तरा है
यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैंज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने
सभी कुछ तो न बह जाएकि मेरे पास रह भी क्या गया है
वो नौहों के अदब का तर्ज़ तो पहचानती होगीउसे कद होगी शायद उन सभी से जो लपाड़ी हों
सभी दुरीदा-दहन अब बदन-दरीदा हुएसपुर्द-ए-दार-ओ-रसन सारे सर-कशीदा हुए
न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतेंतिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए
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