aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "لکد"
लकी फ़ारुक़ी हसरत
born.1990
शायर
लकी फाइन आर्ट प्रिन्टिंग प्रेस, हैदराबाद
पर्काशक
मौलवी मोहम्मद लाद
लेखक
लकी प्रेस, हैदराबाद
लकद कूब-ए-हवादिस का तहम्मुल कर नहीं सकतीमिरी ताक़त कि ज़ामिन थी बुतों की नाज़ उठाने की
शैख़ की इज़्ज़त है मिन-अल-वाहियातकफ़श न होवे तो लकद चाहिए
चश्म-ए-अक़्वाम ये नज़्ज़ारा अबद तक देखेरिफ़अत-ए-शान-ए-रफ़ाना-लका-ज़िक्र देखे
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भरपलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर
मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँकि मेरे ब'अद कोई पढ़ न पाए
क़िस्मत एक मज़हबी तसव्वुर है जिस के मुताबिक़ इंसान अपने हर अमल में पाबंद है। वो वही करता जो ख़ुदा ने उस की क़िस्मत में लिख दिया है और उस की ज़िंदगी की सारी शक्लें इसी लिखे हुए के मुताबिक़ ज़हूर पज़ीर होती हैं। शयरी में क़िस्मत के मौज़ू पर बहुत सी बारीक और फ़लसफ़ियाना बातें भी की गई हैं और क़िस्मत का मौज़ू ख़ालिस इश्क़ के बाब में भी बर्ता गया है। इस सूरत में आशिक़ अपनी क़िस्मत के बुरे होने पर आँसू बहाता है।
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लकदلکد
kick,blow
Warafana Laka Zikrak
अबरार किरतपुरी
नात
Ghareeb Lakadhare Ki Kahani
मक्तबा पयाम-ए-तालीम, नई दिल्ली
कि़स्सा / दास्तान
Waqt Mujhe Likh Raha Hai
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
आत्मकथा
लकड़हारे का बेटा
इन्तिज़ार हुसैन
कहानी
अफ़्साना लिख रही हूँ
ख़ुशबाश
परिचय
इरशाद-उन-नईम लद फ़उल-लईम
अलीमुल्लाह
Al-Aasar-ul-Matbua Wa Al-Ahkam-il-Mashruaa Li-Raddi Al-Elam-il-Marfua
मौलवी मोहम्मद अब्दुल्लाह
इस्लामियात
Qaid-e-Awam Zulfiqar Ali Bhutto
इरशाद बनो जमशेद
जीवनी
Lukan Meti
Lad Chalega banjara
नज़ीर अकबराबादी
Movayyad-ul-Fuzla
मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन
सैयद अयाज़ मुफ़्ती
काव्य संग्रह
Dhundlake
आमिर शेबाई
Lakadbagghe Shahr Main
विकरम सिंह
Rabbana Lakal Hamd
जमाल नासिर
हम्द
मिरी लहद पे पतंगों का ख़ून होता हैहुज़ूर शम्अ' न लाया करें जलाने को
उन से निकलें हिकायतें शायदहर्फ़ लिख कर मिटा दिया न करो
ख़ुद ही मैं ख़ुद को लिख रहा हूँ ख़तऔर मैं अपना नामा-बर भी हूँ
'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नामहम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
दरख़्त काट के जब थक गया लकड़-हारातो इक दरख़्त के साए में जा के बैठ गया
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारागर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँमैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपा करभरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ
सरफ़रोशी के अंदाज़ बदले गए दावत-ए-क़त्ल पर मक़्तल-ए-शहर मेंडाल कर कोई गर्दन में तौक़ आ गया लाद कर कोई काँधे पे दार आ गया
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