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लेख
अब्दुल माजिद दरियाबादी
ग़ज़ल
मिरा अफ़्साना है मज्ज़ूब की बड़ गर कोई ढूँडे
न ज़ाहिर हो ख़बर उस की न उस का मुब्तदा निकले
रंजूर अज़ीमाबादी
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ग़ज़ल
करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ
ये कौन सा सितम है दिल-ए-मुब्तला के साथ
अब्दुल रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराईची
ग़ज़ल
नाक़िस थी इब्तिदा तो है अंजाम-ए-इश्क़ भी
बे-रब्ती मुब्तदा में जो थी वो ख़बर में है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
तिरा रंग सब से जुदा सही तिरी शक्ल सब से हसीं मगर
मिरा मुब्तदा कोई और है मिरा मुंतहा कोई दूसरा