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ग़ज़ल
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
तंज़-ओ-मज़ाह
होते जो कई दीदा-ए-खू ना ब फ़िशां और मरता हूँ हर इक वार पे हरचंद सर उड़ जाये...
आल-ए-अहमद सुरूर
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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लेख
दर-ए-मकतब नियाज़ च हर्फ़-ओ-कुदाम सौत चूँ नामा सजदा ईस्त कि हर जा नविश्ता ऐम...
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं
आसी उल्दनी
ग़ज़ल
वो किताब-ए-ज़िंदगी ही न हुई मुरत्तब अब तक
कि हम इंतिसाब जिस का तिरे नाम चाहते हैं