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कहानी
कृष्ण चंदर
तंज़-ओ-मज़ाह
रशीद अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
सामान दीवाली का
तो आगे लगने लगी फिर हज़ार गंडे की
कमाल निर्ख़ है फिर तो लगा दिवाली का
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिल का सौदा इक निगह पर है तिरी ठहरा हुआ
नर्ख़ तू क्या पूछता है अब तो क़ीमत खुल गई