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ग़ज़ल
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहिए
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
तेरी आवाज़
अपने ठुकराए हुए दोस्त की पुर्सिश के लिए
तो न आई मगर उस रात की पहनाई में