aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پلاؤ"
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगापोलाओ खाएँगे अहबाब फ़ातिहा होगा
रहने दो अभी चाँद सा चेहरा मिरे आगेमय और पिलाओ कि अभी रात बहुत है
जिसे ज़बान-ए-ख़िरद में शराब कहते हैंवो रौशनी सी पिलाओ बड़ा अँधेरा है
क़रीब और भी आओ कि शौक़-ए-दीद मिटेशराब और पिलाओ कि कुछ नशा उतरे
اب تو علم ملا تمہیں پانی مجھے پلاؤتحفہ کوئی نہ دیجیے نہ انعام دیجیے
पिलाओپلاؤ
offer drink
पोलावپلاؤ
kind of dish made of rice
ख़्याली पुलाव
क़ुर्रतुलऐन हैदर
अनुवाद
Padaw
ग़यास अहमद गद्दी
नॉवेल / उपन्यास
Aakhiri Padao Ka Karb
परवेज़ अशरफ़ी
अफ़साना
Kabootaron Ka Spy Plan
शाहिद जमील अहमद
Pahla Panj Saala Plan
Pahla Panj Sala Plan
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जितेन्द्र बिल्लू
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रशीदुद्दीन ख़ाँ
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“कुछ दवा-दारू क्यों नहीं करते? कितनी बार कहा तुमसे?”“बड़े शिफ़ा-ख़ाने का डाक्टर कहता है सूईयाँ लगवाओ और रोज़ तीन पाव दूध और आधी छटाँक मक्खन।”
करीम दाद ने जवाब दिया, “कि हमारी फ़सलें तबाह हो जाएं।”ये सुन कर जीनां को यक़ीन होगया कि दरिया बंद किए जा सकते हैं। चुनांचे निहायत बेचारगी के आलम में उसने सिर्फ़ इतना कहा, “कितने ज़ालिम हैं ये लोग।”
ग़रज़ सारा मुल्क नफ़्स-परवरी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। सबकी आँखों में साग़र-ओ-जाम का नशा छाया हुआ था। दुनिया में क्या हो रहा है... इल्म-ओ-हिकमत किन-किन ईजादों में मसरूफ़ है... बहर-ओ-बर पर मग़रिबी अक़्वाम किस तरह हावी होती जाती हैं... इसकी किसी को ख़बर न थी। बटेर लड़ रहे हैं, तीतरों में पालियाँ हो रही थीं, कहीं चौसर हो रही है। पौ-बारा का शोर मचा हुआ ह...
خیراتی اسپتال، نرسیں، ڈاکٹر، سب ناک بھوں چڑھائے اور اماں کا یہ حال کہ کروٹ لینا محال اور ان کے اگالدان میں خون کے ڈلے کے ڈلے۔ معلوم ہوتا تھا کہ گوشت کے لوتھڑے ہیں۔۔۔ اور میں سب کو خط پہ خط لکھتا تھا۔ یہی سب جو رشتہ داربنتے ہیں! آئیے اکبر بھائی آئیے! آپ سے تو برسوں سے ملاقات نہیں ہوئی۔۔۔ یہی! انھیں کے ماں، باپ۔ کیا ہو جاتا اگر ذرا اور مدد کر دیتے۔ د...
पिलाओ आँखों से ताकि मुझ को कुछ 'आल-ए-अहमद-सुरूर' आएबहुत हैं ग़म मुझ को आशिक़ी के बिना पिए डगमगा रहा हूँ
प्रोफ़ेसर समदानी ने एक-बार फिर सरताज को तख़्ता-ए-मश्क़ बना कर कहा, “देखिए मिस सरताज, आप उर्दू की तरफ़ ज़्यादा तवज्जो दिया करें। ये लाख आपकी ऑपशनल ज़बान सही लेकिन बिलआख़िर आपकी क़ौमी ज़बान भी है।”तरवीज-ए-उर्दू पर ये फ़ख़्रिया जुमला मक़ता का बंद साबित हुआ और उसी वक़्त घंटी बज गई। प्रोफ़ेसर समदानी ने मेज़ से किताबें उठाईं, रूमाल से हाथों को झाड़ा और क्लास से यूं निकला जैसे सिकंदर-ए-आज़म पाब-ए-ज़ंजीर पोरस से मिलने जा रहा हो।
मौसीक़ी की तालीम तो उसने यक़ीनन हासिल की थी कि वो ऐसे घराने में पैदा हुई, जहाँ का माहौल ही ऐसा था। लेकिन एक चीज़ ख़ुदादाद भी होती है। मौसीक़ी के इल्म से किसी का सीना मामूर हो, मगर गले में रस न हो तो आप समझ सकते हैं कि ख़ाली खोली इल्म सुनने वालों पर क्या असर कर सकेगा। नूर जहाँ के पास इल्म भी था और वो खुदा दाद चीज़ भी कि जिसे गला कहते हैं। ये दोनों चीज़ें मिल जाएं तो क़ियामत का बरपा होना लाज़िमी है।
आख़िर एक रोज़ ज़ुहरा जान की उम्मीद बर आई। एक नवाब ईदन पर ऐसा लट्टू हुआ कि वो मुंह माँगे दाम देने पर रज़ामंद हो गया। ज़ुहरा जान ने अपनी बेटी की मिस्सी की रस्म के लिए बड़ा एहतिमाम किया, कई देगें पुलाव और मुतंजन की चढ़ाई गईं।शाम को नवाब साहब अपनी बग्घी में आए, ज़ुहरा जान ने उनकी बड़ी आओ भगत की। नवाब साहब बहुत ख़ुश हुए। ईदन दुल्हन बनी हुई थी, नवाब साहब के इरशाद के मुताबिक़ उसका मुजरा शुरू हुआ, फट पड़ने वाला शबाब था जो मह्व-ए-नग़्मा-सराई था।
चटनी से रोटी का है जिन की बनावबैठे पकाते हैं ख़याली पोलाव
कोई और मामूली दिन होता तो कमबख़्तों से कहा जाता बाहर काला मुँह कर के ग़दर मचाओ लेकिन चंद रोज़ से शह्र की फ़िज़ा ऐसी ग़लीज़ हो रही थी कि शह्र के सारे मुसलमान एक तरह से नज़रबंद बैठे थे। घरों में ताले पड़े थे और बाहर पुलिस का पहरा था। लिहाज़ा कलेजे के टुकड़ों को सीने पर कोदों दलने के लिए छोड़ दिया गया। वैसे सिविल लाइंस में अम्न ही था जैसा कि आम तौर पर रहता है, ...
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