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ग़ज़ल
उस को तो पैराहनों से कोई दिलचस्पी न थी
दुख तो ये है रफ़्ता रफ़्ता मैं भी नंगा रह गया
अख़्तर होशियारपुरी
नज़्म
बम्बई
ख़ून की प्यास खादी के पैराहनों में
जगमगाते हुए क़ुमक़ुमे, पार्क, बाग़ात और म्यूजियम
अली सरदार जाफ़री
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नज़्म
इंतिज़ार
चाँदनी और धूप के इन नुक़रई सिक्कों का रूप
ले उड़े हैं काग़ज़ी पैराहनों के दोष पर
ग़ालिब अहमद
नज़्म
शिकवा
अपने परवानों को फिर ज़ौक़-ए-ख़ुद-अफ़रोज़ी दे
बर्क़-ए-देरीना को फ़रमान-ए-जिगर-सोज़ी दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
इस नई आग का अक़्वाम-ए-कुहन ईंधन है
मिल्लत-ए-ख़त्म-ए-रसूल शोला-ब-पैराहन है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
तना-तन तन तना-तन तन तना-तन तन तना-तन तन
तना-तन तन नहीं मेहनत-कशों का तन न पैराहन
जौन एलिया
ग़ज़ल
रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम
मौसम-ए-गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम