aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "چوتا"
दायरह प्रास छत्ता बाजार
पर्काशक
चिनता मनी
लेखक
चिस्तया प्रेस छत्ता बाज़ार
नन्दलाल चत्ता
अनवर प्रेस छत्ता बाजार, हैदराबाद
मककी प्रेस, छत्ता बाज़ार
ख़ु्र्शीद प्रेस छत्ता बाज़ार, हैदराबाद
कुतुब ख़ाना हैदरी छत्ता बाज़ार, हैदराबाद
दारु-उल-इस्लाम शमस प्रेस, छत्ता बाजार
मतबा फिदाई दकन छत्ता बाजार
तेरी गली में सारा दिनदुख के कंकर चुनता हूँ
मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिताऔरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझेगोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए
कुलवंत कौर भरे भरे हाथ पैरों वाली औरत थी। चौड़े चकले कूल्हे, थल-थल करने वाले गोश्त से भरपूर कुछ बहुत ही ज़्यादा ऊपर को उठा हुआ सीना, तेज़ आँखें। बालाई होंट पर बालों का सुरमई गुबार, ठोढ़ी की साख़्त से पता चलता था कि बड़े धड़ल्ले की औरत है। ईशर...
ये क़ुलक़ुल तीसरा पैग अब तो चौथा हो गुमाँ ये हैगुमाँ का मुझ से कोई ख़ास रिश्ता हो गुमाँ ये है
उर्दू शायरी में पानी अपने अलग-अलग रूप के बावजूद जीवन के रूपक के तौर पर नज़र आता है । पानी की रवानी असल में जीवन की गतिशीलता का उदाहरण है । अर्थात पानी का ठहर जाना जीवन का ठहर जाना है । पानी का रूपक अपने बहुत से अर्थ की अनिवार्यता की वजह से शायरी और मुख्य रूप से नई शायरी में ख़ूब नज़र आता है । उर्दू शायरी में पानी का रूपक कहीं कहीं ज़िंदगी की ख़ूँ-रेज़ी और तबाही के अर्थ शास्त्र को भी पेश करता है । यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में पानी के रूपक को देखा जा सकता है ।
दोस्ती की तरह दुश्मनी भी एक बहुत बुनियादी इन्सानी जज़्बा है। ये जज़्बा मनफ़ी ही सही लेकिन बाज़-औक़ात इससे बच निकलना और इस से छुटकारा पाना ना-मुमकिन सा होता है अलबत्ता शायरों ने इस जज़्बे में भी ख़ुश-गवारी के किए पहलू निकाल लिए हैं, उनका अंदाज़ा आपको हमारा ये इंतिख़ाब पढ़ कर होगा। इस दुश्मनी और दुश्मन का एक ख़ालिस रूमानी पहलू भी है। इस लिहाज़ से माशूक़ आशिक़ का दुश्मन होता है जो ता उम्र ऐसी चालें चलता रहता है जिससे आशिक़ को तकलीफ़ पहुंचे, रक़ीब से रस्म-ओ-राह रखता है। इस की दुश्मनी की और ज़्यादा दिल-चस्प और मज़ेदार सूरतों को जानने के लिए हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
शायरी और साहित्य में भाषा आम तौर पर शब्द अपने सामने के अर्थ और सामान्य अवधारणा से अलग होता है । आसमान भी इसी तरह का एक शब्द है । उर्दू की क्लासिकी शायरी तक में आसमान एक रूपक के तौर पर मौजूद है जो अपने सामने के अर्थ और सामान्य अवधारणा से बिल्कुल अलग है । इश्क़ के संदर्भ में आसमान एक शक्तिशाली किरदार है जो तमाम तरह की मुश्किलें पैदा करता है । आसमान को इंसानों के भाग्य के रूपक के तौर पर भी उर्दू शायरी ने पेश किया है । प्रेमी के सामने हर तरह की मुश्किलें यही पैदा करता है । प्रेमी के हौसले को तोड़ने के लिए चालें चलता है । उस पर ज़ुल्म करता है । इसलिए उर्दू शायरी का प्रेमी आसमान की तरफ़ इस उम्मीद मे देखता है शायद वो मेहरबान हो जाए । अर्थों के इन संदर्भों को समझने के लिए चुनिंदा शायरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
चूताچوتا
dripping
Chaudah Sitare
सय्यद नज्मुल हसन
Chaudah Zubanein Chaudah Kahaniyan
कहानी
Teen Shahron Ka Chautha Aadmi
संजर हिलाल भरती
शायरी तन्क़ीद
Chautha Asman
मोहम्मद अल्वी
काव्य संग्रह
Chalta Purza
नॉवेल / उपन्यास
लालची चूहा
हरमिंदर ओहरी
अनुवाद
Aadam Khor Cheeta
रियाज़ अहमद खान
शिकारी
अशरफ़ चाचा की चौदा कहानियाँ
चाैधरी वहाज अहमद अशरफ़
Tazkirat-us-Salateen-e-Chaghta
सय्यद मोहम्मद हादी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Chola Rajgan
के.ए.नील कनठ शासत्री
महिलाओं की रचनाएँ
Quran Majeed Ki Tafseerein Chaudah Sau Baras Mein
ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी, पटना
इस्लामियात
Rashtriya Swayam Sevak Sangh Ka Cultural Chola
सुभद्रा जोशी
Islami Nizam-e-Taleem Ka Chaudah Sau Sala Muraqqa
इंतिज़ामुल्लाह शहाबी
अब्दुस्समद
Abbu Khan Ki Bakri
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
ऐ दिल की लगी चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल मेंउस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए
बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदनउसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे
भागी नमाज़-ए-जुमा तो जाती नहीं है कुछचलता हूँ मैं भी टुक तो रहो मैं नशे में हूँ
एक दिन नहाते नहाते एक मुसलमान पागल ने "पाकिस्तान ज़िंदाबाद" का नारा इस ज़ोर से बुलंद किया कि फ़र्श पर फिसल कर गिरा और बेहोश हो गया। बा'ज़ पागल ऐसे भी थे जो पागल नहीं थे। उनमें अक्सरियत ऐसे क़ातिलों की थी जिनके रिश्तेदारों ने अफ़सरों को दे दिला कर,...
कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ेंचलता तो बिछड़ जाता रुकता तो सफ़र जाता
शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगरमैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला
दिल्ली आने से पहले वो अंबाला छावनी में थी जहां कई गोरे उसके गाहक थे। उन गोरों से मिलने-जुलने के बाइस वो अंग्रेज़ी के दस पंद्रह जुमले सीख गई थी, उनको वो आम गुफ़्तगु में इस्तेमाल नहीं करती थी लेकिन जब वो दिल्ली में आई और उसका कारोबार न चला...
रणधीर को पसीने की बू से सख़्त नफ़रत थी। नहाने के बाद वो हमेशा बग़लों वग़ैरा में पाउडर छिड़कता था या कोई ऐसी दवा इस्तेमाल करता था जिससे वो बदबू जाती रहे लेकिन तअज्जुब है कि उसने कई बार... हाँ कई बार उस घाटन लड़की की बालों भरी बग़लों को...
मैं मोहब्बत की बादशाहत हूँमुझ पे चलता नहीं है राज मिरा
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