aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "کندن"
अख़गर शाहानी
शायर
कुंदन लाल कुंदन
born.1936
लेखक
कंचन डोभाल
born.1989
संजय कुमार कुन्दन
born.1955
कुंदन अरावली
born.1934
कुंदन लाल सहगल
1904 - 1947
कलाकार
प्रो. कुंदनलाल उप्रैती
कुंदन बाग़ बेगम पीठ, हैदराबाद
पर्काशक
सेठ कुनदन लाल प्रेस, लखनऊ
अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुएहम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
सोच का सारा उजला कुंदनज़ब्त की राख में घुल जाएगा
“लौंडिया सोला से एक दिन ज़्यादा की हो तो सौ जूते सुब्ह, सौ जूते शाम, ऊपर से हुक़्क़ा का पानी।” मगर उनकी किसी ने न सुनी। वो अपनी गोरी बेगम की नाव पार लगाने के लिए ख़्वाही न ख़्वाही दुंद मचाती थीं। रुख़साना बेगम थीं कि बस कोई देखे तो...
रूह इक बार जलेगी तो वो कुंदन होगीरूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है?
तपा हूँ आतिश-ए-दौराँ में 'नायाब'तो अब जा कर कहीं कुंदन बना हूँ
कुंदनکندن
pure gold, fine, bright
अरमुग़ान-ए-अरूज़
छंदशास्र
Ehtisab-ul-Arooz
Meraj-e-Fan
अरूज़-ए-पंगुल-ओ-ख़लील
जुनूबी-ओ-शुमाली हिन्द की तारीख़ी मस्नवियाँ
मसनवी तन्क़ीद
Hindi Chhand Arabi Farsi Urooz: Ek Mutala
रुबाइयात-ओ-माहिये और माहिये की हैअत
कह-मुकरनी
Aag Rakh Aur Kundan
बलराज वर्मा
अफ़साना
Junubi Wa Shumali Hind Ki Tareekhi Masnaviyan
कुंदन पारे
काव्य संग्रह
मिसल-ओ-मुहावराती रुबाइयात-ए-कुंदन
रुबाई
Armughan-e-Rubaiyat-e-Kundan
तारीख़ी मसनवियाँ तहक़ीक़ी ओ तन्क़ीदी मुतला
आलोचना
अरमुगान-ए-कुंदन
Dastan-e-Ameer Hamzah Zabani Bayaniya, Bayan Kuninda Aur Samayeen
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
व्याख्यान
रंज-ओ-अलम की भट्टी में 'नायाब' डाल करकुंदन बना रहा हूँ मैं अपने वजूद को
घर में बूढ़ा बाप रह गया था और छोटे बहन-भाई। छोटी दुलारी तो हर वक़्त भाभी की ही बग़ल में घुसी रहती। गली-महल्ले की कोई औरत दुल्हन को देखे या न देखे। देखे तो कितनी देर देखे। ये सब उसके इख़्तियार में था। आख़िर ये सब ख़त्म हुआ और आहिस्ता-आहिस्ता...
इस गाय और बकरी के इलावा एक लंगड़ा कुत्ता था, जो कालू भंगी का बड़ा दोस्त था। वो लंगड़ा था और इसलिए दूसरे कुत्तों के साथ ज़्यादा वो चल फिर ना सकता था और अक्सर अपने लंगड़े होने की वजह से दूसरे कुत्तों से पिटता और भूका रहता और ज़ख़्मी...
प्यार की आग बना देती है कुंदन जिन कोउन के ज़ेहनों में भला ज़ात कहाँ होती है
जिन के जिस्मों कीभरपूर जवानी का कुंदन
ان سادوں سے کندہ کب ہوئی ہےظاہر نہ کیا بطون اپنا
आँ दीन रा एज़दी किताब एन बूदे बेगम: ठीक, ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने। ग़ैब ही से मज़ामीन आते होंगे जो मअनी यूं ग़ायब रहते हैं और ज़बान तो वाक़ई ऊपर वाली है। इस ज़मीन पर बसने वाले तो नहीं बोलते, कम अज़ कम दिल्ली में तो नहीं बोलते...
سربہ بستان چو دہد جلوۂ یغمائی را اول از سرو کند جامہ رعنائی را...
बिरह का जान कंदन है निपट सख़्तशिताब आ मुश्किल आसानी यही है
मस-ए-ख़ाम को जिस ने कुंदन बनायाखरा और खोटा अलग कर दिखाया
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