aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گز"
एजाज़ गुल
शायर
गुल फ़राज़
born.1987
गुल गुलशन
born.1988
लेखक
समीना गुल
कोकी गुल
हुमैरा गुल तिश्ना
निकहत यासमीन गुल
आग़ा गुल
born.1951
गुल अफ़शाँ
born.1976
अशरफ़ गुल
रहीम गुल
1924 - 1985
मौलवी गुल हसन क़ादिरी
मीर गुर खान नसीर
गुल-ए-राना
born.1995
जॉन गिलक्राइस्ट
1759 - 1841
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस कीसो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहींदो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हमतू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
हिज्र मुहब्बत के सफ़र का वो मोड़ है, जहाँ आशिक़ को एक दर्द एक अथाह समंदर की तरह लगता है | शायर इस दर्द को और ज़ियादः महसूस करते हैं और जब ये दर्द हद से ज़ियादा बढ़ जाता है, तो वह अपनी तख्लीक़ के ज़रिए इसे समेटने की कोशिश करता है | यहाँ दी जाने वाली पाँच नज़्में उसी दर्द की परछाईं है |
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
मंशी नवल किशोर ने 1857 के गदर के बाद भारत की संस्कृति और साहित्यिक धरोहर को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रेस ने 1858 से 1950 तक धर्म, इतिहास, साहित्य, विज्ञान और दर्शन पर लगभग छह हजार किताबें प्रकाशित की। रेख़ता पर मंशी नवल किशोर प्रेस की किताबों का एक क़ीमती संग्रह उपलब्ध है।
गज़گز
a yard measure, a ramrod
Do Gaz Zameen
अब्दुस्समद
ऐतिहासिक
Aab-e-Gum
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
गद्य/नस्र
Jaun Eliya-Khush Guzran Guzar Gaye
नसीम सय्यद
मज़ामीन / लेख
Prem Chand Ke Muntakhab Afsane
प्रेमचंद
पाठ्य पुस्तक
Gul-e-Naghma
फ़िराक़ गोरखपुरी
काव्य संग्रह
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
Jannat Ki Talash
Tareekh-e-Balochistan
Gilchrist Aur Uska Ahd
मोहम्मद अतीक़ सिद्दीक़ी
आलोचना
Khwab-e-Gul Pareshan Hai
अहमद फ़राज़
Firdaus-e-Gumshuda
जॉन मिल्टन
महा-काव्य
Gul-bakawali
मुंशी निहाल चंद लाहाैरी
दास्तान
Abul Kalam Ke Afsane
अबुल कलाम आज़ाद
कि़स्सा / दास्तान
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक 'उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
और अगर वो उससे ज़रूरत से ज़्यादा छेड़छाड़ करते तो वो उनको अपनी ज़बान में गालियां देना शुरू करदेती थी। वो हैरत में उसके मुँह की तरफ़ देखते तो वो उनसे कहती, “साहिब, तुम एक दम उल्लु का पट्ठा है। हरामज़ादा है... समझा।” ये कहते वक़्त वो अपने लहजे में...
जंग से पहले रणधीर नागपाड़ा और ताजमहल होटल की कई मशहूर-ओ-मारूफ़ क्रिस्चियन लड़कियों से जिस्मानी तअल्लुक़ात क़ायम कर चुका था। उसे बख़ूबी इल्म था कि इस क़िस्म के तअल्लुक़ात की क्रिस्चियन लड़कों के मुक़ाबले में कहीं ज़्यादा मालूमात रखता था जिनसे ये छोकरियां आम तौर पर रोमांस लड़ाती हैं और...
मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतेंक़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे
उसने डिप्टी कमिशनर की एक न सुनी। उस पर बस यही ख़ौफ़ सवार था कि ये लीडर महात्मा गांधी के इशारे पर सामराज का तख़्ता उलटने के दर पे हैं और जो हड़तालें हो रही हैं और जल्से मुनअक़िद होते हैं उनके पस-ए-पर्दा यही साज़िश काम कर रही है। डाक्टर...
होंटों को सी के देखिए पछ्ताइएगा आपहंगामे जाग उठते हैं अक्सर घुटन के बा'द
बड़ी मुमानी का कफ़न भी मैला नहीं हुआ था कि सारे ख़ानदान को शुजाअ'त मामूँ की दूसरी शादी की फ़िक्र डसने लगी। उठत बैठते दुल्हन तलाश की जाने लगी। जब कभी खाने पीने से निमट कर बीवियाँ बेटियों की बरी या बेटियों का जहेज़ टाँकने बैठतीं तो मामूँ के लिए...
वो जो दो-गज़ ज़मीं थी मेरे नामआसमाँ की तरफ़ उछाल आया
उससे तफ्सील-ए-इ’ल्म का जो एक वलवला सा हमारे दिल में उठ रहा था, वह कुछ बैठ सा गया। हमने सोचा यह मामूँ लोग अपनी सर-परस्ती के ज़अ’म में वालदैन से भी ज़्यादा एहतियात बरतेंगें, जिसका नतीजा यह होगा कि हमारे दिमाग़ी और रूहानी क़वा को फलने फूलने का मौक़ा न...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books