aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گناہ"
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
1857 - 1909
शायर
फ़रहत कानपुरी
1905 - 1952
बाल गंगा धर तिलक जी महाराज
लेखक
मुंशी गंगा प्रशाद
गंगा फ़ाइन आर्ट प्रेस, लखनऊ
पर्काशक
गंडा सिंह
संपादक
गंगा प्रसाद उपाध्याय
प्रादेवत गोहा
मुंशी गंगा सहाय
गंगाधर
मुनशी गंगा प्रशाद लखनऊ
गंगा धर प्रशाद शुक्ला
गंगा राम जी
गंगा सागर प्रेस
सागर गंगा प्रेस, हैदराबाद
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के
कोई समझे तो एक बात कहूँइश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैंकितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
बहुत कतरा रहे हो मुग़्बचों सेगुनाह-ए-तर्क-ए-बादा कर लिया क्या
न रहा जुनून-ए-रुख़-ए-वफ़ा ये रसन ये दार करोगे क्याजिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था वो गुनाहगार चले गए
गुनाह एक ख़ालिस मज़हबी तसव्वुर है लेकिन शायरों ने उसे बहुत मुख़्तलिफ़ तौर से लिया है। गुनाह का ख़ौफ़ में मुब्तला कर देने वाला ख़याल एक ख़ुश-गवार सूरत में तब्दील हो गया है। ये शायरी आपको गुनाह, सवाब, ख़ैर-ओ-शर के हवाले से बिलकुल एक नए बयानिए से मुतआरिफ़ कराएगी।
लोकप्रिय शायर और फि़ल्म गीतकार प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली के गीतों के लिए मशहूर
गंगा जमुनी तहज़ीब शायरी
गुनाहگناہ
a fault, crime, sin, guilt
Baap Ka Gunah
हकीम अहमद शुजा
नाटक / ड्रामा
Namloos ka Gunah aur Dusri kahaniyan
शमोएल अहमद
अफ़साना
Pahli Nasl Ka Gunah
सफ़ीया सिद्दीक़ी
महिलाओं की रचनाएँ
Chand Ka Gunah
राजा मेहदी अली ख़ाँ
Gunahgar
इफ़्फ़त मोहानी
नीतिपरक
Gunah-e-Adam
गुनाह की मज़दूरी
मिर्ज़ा हामिद बेग
गुनाह
रईस अहमद जाफ़री
नॉवेल / उपन्यास
Haqiqat-e-Gunah
पादरी होपर
इस्लामियात
Be-Gunah Mujrim
शफ़ीक़ुर्रहमान
Gunah Ka Khauf
चौधरी मोहम्मद अली रुदौलवी
Watan Ke Ashiq Ka Begunah Khoon
नन्द शुजाबादी
स्वतंत्रता आंदोलन
Siyahkaar
आशा रानी लखोटिया
सामाजिक
Gunah Ki Ratein
एम.असलम
Be-Gunah Qaidi
मुसव्विर सुराग़
ये रस्म-ए-बरहम फ़ना है ऐ दिल गुनाह है जुम्बिश-ए-नज़र भीरहेगी क्या आबरू हमारी जो तू यहाँ बे-क़रार होगा
हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्तेआख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैरजैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के
ज़ालिम के लब पे ज़िक्र भी इन का गुनाह हैफलती नहीं है शाख़-ए-सितम इस ज़मीन पर
इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हमकुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
शमशीर-ए-शिम्र और मोहम्मद की बोसा-गाहजिस पर रसूल होंटों को मलते हों प्यार से
जब डॉ. किचलू और सत्यपाल की गिरफ़्तारी की ख़बर आई तो लोग हज़ारों की तादाद में इकट्ठे हुए कि मिल कर डिप्टी कमिशनर बहादुर के पास जाएं और अपने महबूब लीडरों की जिला वतनी के अहकाम मंसूख़ कराने की दरख़ास्त करें। मगर वो ज़माना भाई जान दरख़ास्तें सुनने का नहीं...
इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाहबख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है
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