aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گوا"
विक्रम गौर वैरागी
शायर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
1784 - 1850
गौहर होशियारपुरी
1930 - 2000
अफ़ज़ल गौहर राव
born.1965
गौहर रज़ा
born.1956
मख़मूर जालंधरी
1915 - 1985
गौहर शेख़ पूर्वी
born.1951
गौहर उस्मानी
1924 - 2004
तनवीर गौहर
born.1982
अल्ताफ़ गौहर
मोईन गोहर
born.1994
गौहर अज़ीज़
born.1963
कुलदीप गौहर
born.1929
लेखक
गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम
born.1934
गौहर सीमा
न ऐसी ख़ुश-लिबासियाँकि सादगी गिला करे
خم تھے گرا تھا کوہِ مصیبت حسینؔ پرماتم تھا بیبیوں میں سکینہؔ کے بین پر
“मैंने क़त्ल क्यों किया। एक इंसान के ख़ून में अपने हाथ क्यों रंगे, ये एक लंबी दास्तान है । जब तक मैं उसके तमाम अ’वाक़िब ओ अ’वातिफ़ से आपको आगाह नहीं करूंगा, आपको कुछ पता नहीं चलेगा... मगर उस वक़्त आप लोगों की गुफ़्तगु का मौज़ू जुर्म और सज़ा है।...
"मेरे प्यारे दोस्तो! ये हमारा और आपका फ़र्ज़ है, इस से ज़्यादा अहम, ज़्यादा नतीजा-ख़ेज़ और क़ौम के लिए ज़्यादा मुबारक कोई फ़र्ज़ नहीं है। हम मानते हैं कि उनके आदात व अख़लाक़ की हालत निहायत अफ़सोसनाक है मगर यक़ीन मानिए ये सब हमारी करनी है। उनकी इस शर्मनाक तमद्दुनी...
ज़माना जुलाई 1976, वक़्त आठ बजे शब वसीअ’ स्टेज - उ’क़्बी दीवार के वस्त में खुला दरीचा। उसके दोनों तरफ़ गोवा की सियाह तिपाइयों पर मुंग गुल-दान, बाईं दीवार पर दो रोग़नी अकैडमी पोर्टरैट, उनके ऐ’न नीचे क्वीन सोफा, दो कुर्सियाँ, एक कार्ड टेबल, कोने में काटेज पियानो, उसके ऊपर...
रेख़्ता ने अपने पाठकों के अनुभव से, प्राचीन और आधुनिक कवियों की उन पुस्तकों का चयन किया है जो सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं.
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
उर्पदू में र्तिबंधित पुस्तकों का चयन
Goya
जौन एलिया
काव्य संग्रह
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Ganjeena-e-Gauhar
शाहिद अहमद देहलवी
स्केच / ख़ाका
Deewan-e-Hazrat Ali
हज़रत अली
दीवान
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
Gauhar-e-Adab
नायाब जहीर
पाठ्यक्रम
Makhzan-e-Adab
मौलवी मोहम्मद अब्दुल शहीद
पाठ्य पुस्तक
Nai Arab Duniya
मोहम्मद यूनुस निगरामी नदवी
विश्व इतिहास
Aur Insan Mar Gaya
रामा नन्द सागर
फ़िक्शन
Hindisi Raushni
हमीद असकरी
विज्ञान
Mushahidat
होश बिलग्रामी
आत्मकथा
Insani Duniya Par Musalmanon Ki Urooj-o-Zawal Ka Asar
अबुल हसन अली नदवी
Duniya Gol Hai
इब्न-ए-इंशा
गद्य/नस्र
Hamari Paheliya
सय्यद यूसुफ़ बुख़ारी
पहेली
Aur Main Sochta Rah Gaya
अजमल सिराज
ग़ज़ल
ज़ीने की तरफ़ का दरवाज़ा आहिस्ता से खुला और वो अंदर आई। और उसने उन मुअ’ज़्ज़िज़ मेहमानों को एक लहज़े के लिए ग़ौर से देखा और ज़रा पीछे को हट गई। “आप मिस डी कोडरा हैं? मेरा मतलब है... मुआ'फ़ कीजिएगा हम आपके घर में इस तरह बिला-इजाज़त और बग़ैर...
मैंने कई बार उसे अपने इन ही बालों में लहरें पैदा करने की कोशिश में मसरूफ़ देखा है। अपने चार बेटों को जिनमें से एक ताज़ा ताज़ा फ़ौज में भर्ती हुआ था और अपने आप को हिंदुस्तान के हुकमरानों की फ़ेहरिस्त में शामिल समझता था। और दूसरा जो हर रोज़...
मैं घड़े को एक कोने में उठा ले गया वहां दीवार से लगा, अच्छी ख़ासी सेनी के बराबर पीतल का घंटा खड़ा था। मैंने झुक कर देखा घंटे में मुंगरियों की मार से दाग़ पड़ गए थे। दो अंगुल का हाशिया छोड़कर जो सुराख़ था उसमें सूत की काली रस्सी...
’’آہ۔ یہ ہمارے ہندوستان کی بے جوڑ شادیاں۔‘‘ کنور رانی بلبیر سنگھ نے ناک پر سے رومال ہٹاکر سماج کی دگرگوں حالت پر ایک مختصر سی آہ بھری اور پھر ویپکس سونگھنے لگیں۔ بیگم ارجمند اور کنور رانی بلبیر سنگھ سارے دن اپنے ونگ میں اپنے کمروں کے آگے برآمدے...
ایک مکھی بیٹھی اپنا گھر لیپ رہی تھی۔ گھر لیپتے لیپتے اپنا نام بھول گئیں۔ گھر لیپتے لیپتے لیپتے جو انہیں اپنے نام کا خیال آیا۔ تو گئیں ہمسائی کے ہاں۔ ہمسائی سے جاکر کہا۔ بی ہمسائی بی ہمسائی میرا نام بتاؤ۔ اس نے کہا۔ بوا میں نہیں جانتی۔ میرے...
’’ارے او لالا! تو کیوں کھڑا ہو رہیا کوبرماں؟‘‘ گھر کی اماں نے آواز دی۔ اس وقت بڑا لالا ناریل کا دم لگائے ہوئے، صحن میں کھڑا اماں پر ہنس رہا تھا۔ اب رام نام کے بعد میا نے کلی کردی۔ بھلا کیا لابھ اس پوجا پاٹ سے؟ رام نام...
हिन्दुस्तान में सैंकड़ों की तादाद में अख़बारात-ओ-रसाइल छपते हैं मगर हक़ीक़त ये है कि सहाफ़त इस सरज़मीन में अभी तक पैदा नहीं हुई, अगर ऐसा होता तो आज हमें मुतज़क्किरा सदर अल्फ़ाज़ में अपनी कमज़ोरियों का इज़हार ना करना पड़ता। सहाफ़त अपनी फ़ित्री शक्ल ख़ुद-ब-ख़ुद इख़्तियार करेगी। जब हमारे मुल्क...
’’او بابا گرم کیوں ہوئیں گا، وہ ہمارا سگے والا نئیں لگتا ہم بولا پہلے تپاس کریں گے۔۔۔‘‘ یہ کہہ کر حلیمہ بائی نے اپنے کارندے کو بلایا اور اسے بظاہر سخت آواز میں تحقیق کرنے کا حکم دے دیا۔۔۔ اس کے بعد دلی والے کی قیادت میں وفد والے...
’’ای میں گسہ (غصہ ہونے) ہوئے کی کون بات ہے۔ ہم تو ایسی ہنسی ماں کہہ دے رہن۔‘‘ بھگوان دین کے لہجے میں اس قدر افسوس اور پشیمانی تھی کہ منگل کی خفگی جاتی رہی لیکن اس نے اسے چھپانے کی کوشش کی اور کہا، ’’جانت ہن تم پاسی جات...
وہ زور سے ہنسی۔ بس ہو گئی نا چھٹی۔ تم مردوں میں ہر وقت ایک چور مرد کیوں رہتا ہے۔ بیٹا ہو تو تاڑ پر چڑھا دو۔ دس گنا ہ معاف۔ کچھ بھی پہن لے۔ دس دس محبوباؤں کے ساتھ گھومتا رہے۔ مگر بیٹیاں۔‘‘ وہ میرے چہرے پر جھک گئی...
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