aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "आपका"
आक़ा बेदार बख़्त खाँ
लेखक
नय्यर आपा
इशरत आपा
संपादक
आक़ा हुसैन क़ुली ख़ाँ अज़ीमाबादी
आक़ा मुर्तज़ा
आक़ा-ए-राज़ी
सय्यद आक़ा हसन नामी
सैयद हुसैन आक़ा
मलिका जान एक दम चौंकी। उसने नोची को इशारा किया, वो भी चौंक पड़ी, सामने दहलीज़ में मिर्ज़ा नौशा था। मलिका जान फ़ौरन उठी और तस्लीमात बजाई, नोची ने भी उठकर खड़े क़दम ताज़ीम दी, ये जान कर कि शहर के कोई रईस हैं, मलिका इस्तिक़बाल के लिए आगे बढ़ी,...
जब कॉलिज में था तो कई लड़कियां उसपर जान छड़कतीं थीं मगर वो बेएतिनाई बरतता, आख़िर उस की आँख एक शोख़-ओ-शंग लड़की जिसका नाम सीमा था, लड़ गई। सलीम ने उससे राह-ओ-रस्म पैदा करना चाहा। उसे यक़ीन था कि वो उसकी इलतफ़ात हासिल कर लेगा। नहीं, वो तो यहां तक...
(दौर-ए-जदीद के शोअरा की एक मजलिस में मिर्ज़ा ग़ालिब का इंतज़ार किया जा रहा है। उस मजलिस में तक़रीबन तमाम जलील-उल-क़द्र जदीद शोअरा तशरीफ़ फ़र्मा हैं। मसलन मीम नून अरशद, हीरा जी, डाक्टर क़ुर्बान हुसैन ख़ालिस, मियां रफ़ीक़ अहमद ख़ूगर, राजा अह्द अली खान, प्रोफ़ेसर ग़ैज़ अहमद ग़ैज़, बिक्रमा जीत...
अज़ीज़ लखनवी, मुझसे मिलने आए हो तो ज़रूर कुछ न कुछ कहते होगे। कुछ अपना कलाम भी सुनाओ। अज़ीज़: हम तो आपका कलाम आपकी ज़बान मुबारक से सुनने की ग़रज़ से आए थे।...
ज़हीर को अब अपनी माशूक़ा का नाम मालूम हो चुका था। चुनांचे उसने यासमीन के नाम कई ख़त कॉलिज में बैठ कर लिखे, मगर फाड़ डाले। लेकिन एक रोज़ उसने एक तवील ख़त लिखा और तहय्या कर लिया कि वो उस तक ज़रूर पहुंचा देगा। बहुत दिनों के बाद जब...
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
शे’र या शायरी पर की जाने वाली शायरी की काफ़ी अहमियत है। शायरी की बारीकीयाँ बताने और इसका मक़सद बताने और शे’र-गोई के गुर सिखाने के लिए आज भी शायर अक्सर शे’र-गोई का ही सहारा लेते हैं। शे’र शायरी के इस अन्दाज़ से आपका तआरुफ़ चंद मिसालों के बग़ैर लुत्फ़ नहीं देगाः
हमें आपको यह बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि रेख़्ता फ़ाउंडेशन ने दस साल का सफ़र तै कर लिया है। और इस मुक़ाम तक पहुँचने में आपका क़ीमती और प्यार भरा सहयोग बहुत ज़रूरी था। हमने इन दस सालों में सबसे ज़्यादा पसन्द की गयीं ग़ज़लों, शेरों, नज़्मों, और कहानियों का चयन किया है।पढ़िए और जानिए क्या क्या इस चयन में शामिल है।
Nashtar-e-Ishq
नशतर-ए-इश्क़
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Ganjeena-e-Matalib
Ahsan-Ul-Tawareekh
भारत का इतिहास
Mirat-e-Daish
हिकायात
Ahsanuttawareekh
Khulasa-e-Intekhabat-e-Shibli
भाषा विज्ञान
Sarguzasht Musa Zordan Hakim Nabatat Wa Mast Ali Shah Mashoor Bajadugar
Farhang-e-Geelani
शब्द-कोश
International Mushaira
महिलाओं की रचनाएँ
Zakheera-e-Jang-e-Bahaduri
इतिहास
Nigaristan-e-Bedar
Farhang-e-Gilani
Abr-e-Karam
ये दुनिया भी अ’जीब-ओ-ग़रीब है... ख़ासकर आज का ज़माना। क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इसके मुतअ’ल्लिक़ शायद आपको ज़्यादा इल्म न हो। आजकल क़ानून एक बेमा’नी चीज़ बन कर रह गया है । इधर कोई नया क़ानून बनता है, उधर यार लोग उसका तोड़ सोच लेते हैं,...
मैं सई कर रहा था! इसलिए कहा, क्योंकि जब मैंने उसकी तरफ़ देखा था तो उसके सारे वजूद में बेचैनी की लहर दौड़ गई थी और मुझे ऐसा मालूम हुआ था कि वो अपने आपको मेरी निगाहों से ओझल रखना चाहता है। मैं उठ खड़ा हुआ और सिगरेट सुलगा कर...
मोमिन ने जवाब में कहा, “मिर्ज़ा साहिब, अगर दर्द से आपका मतलब दाढ़ का दर्द है, तो उसकी कोई दवा नहीं, बेहतर होगा आप दाढ़ निकलवा दीजिए क्योंकि विलियम शेक्सपियर ने कहा है, वो फ़लसफ़ी अभी पैदा नहीं हुआ जो दाढ़ का दर्द बर्दाश्त कर सके।” मिर्ज़ा ग़ालिब ने...
फिर वो मुझसे मुख़ातिब हुई, “आपने ताँगा क्यों रोका था जनाब?” मैंने हकला के जवाब दिया, “जावेद... जावेद... मैं जावेद का दोस्त सआदत हूँ, आपका नाम ज़ाहिदा है ना।”...
रात के खाने पर अल्मास के वालिद के साथ मुल्की सियासत से वाबस्ता हाई फिनांस पर तबादला-ए-ख़्यालात करने के बाद वो थके-हारे अपनी जा-ए-क़ियाम पर पहुंचते और वायलिन निकाल कर धुनें बजाने लगते, जो उसकी संगत में पैरिस में बजाया करते थे, वो दोनों हर तीसरे दिन एक दूसरे को...
तसल्लियां और दिलासे बेकार हैं। लोहे और सोने के ये मुरक्कब में छटांकों फांक चुका हूँ। कौन सी दवा है जो मेरे हलक़ से नहीं उतारी गई। मैं आपके अख़लाक़ का ममनून हूँ मगर डाक्टर साहब मेरी मौत यक़ीनी है। आप कैसे कह रहे हैं कि मैं दिक़ का मरीज़...
“अल्लाह! मेरे अल्लाह मियाँ! अब के तो मेरी आपा का नसीबा खुल जाए। मेरे अल्लाह मैं सौ रक्अ’त नफ़िल तेरी दरगाह में पढ़ूँगी।” हमीदा ने फ़ज्र की नमाज़ पढ़ कर दुआ माँगी। सुबह राहत भाई आए तो कुबरा पहले ही से मच्छरों वाली कोठरी में जा छुपी थी। जब सेवईयों...
अख़बार “वतन” के एडिटर मौलवी इंशाअल्लाह ख़ाँ अल्लामा के हाँ अक्सर हाज़िर होते थे। उन दिनों अल्लामा अनार कली बाज़ार में रहते थे और वहीं तवाइफ़ें आबाद थीं। म्युनिस्पिल कमेटी ने उनके लिए दूसरी जगह तजवीज़ की। चुनांचे उन्हें वहाँ से उठा दिया गया। उस ज़माने में मौलवी इंशाअल्लाह ख़ाँ...
“हाँ, हाँ... बहुत ईमानदार है... दमड़ी दमड़ी का हिसाब देता है, तुम क्यों फ़िक्र करती हो।” ज़ुबैदा ने बहुत मुतफ़क्किर हो कर कहा, “मुझे क्यों फ़िक्र न होगी बाल-बच्चेदार हूँ। मुझे अपना तो कुछ ख़याल नहीं, लेकिन इनका तो है। ये आपका नौकर अगर आपका रुपया मार गया तो ये...
मैंने कहा, “मुझे मालूम नहीं।” बाबू गोपी नाथ ने तअज्जुब से कहा, “क्या बात करते हैं आप मंटो साहब... आपको, और कारों की क़ीमत मालूम न हो। कल चलिए मेरे साथ, ज़ीनो के लिए एक मोटर लेंगे। मैंने अब देखा है कि बंबई में मोटर होनी ही चाहिए।” ज़ीनत का...
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