aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कुमक"
जे. सी. कुमाँ रप्पा
लेखक
दारुत्तबलीग़-उल-इसलामी क़ुम, ईरान
पर्काशक
संत कुमर सिन्हा
ब्रेन्द्र कुमर भट्टाचारिया
अंजनी कुमार गोयल
born.1958
उस का लश्कर जहाँ-तहाँ या'नीहम भी बस बे-कुमक गए होंगे
मैं तो दुश्मन को भी मुश्किल में कुमक भेजूँगाइतनी जल्दी उसे पसपा नहीं होने देना
ये कैसी बे-हिसी है कि पत्थर हुई है आँखवैसे तो आँसुओं की कुमक बार-हा मिली
फ़ौरन बड़े भाईयों, बहनों, मामुओं, चचाओं और दमदार ख़ालाओं और फूफियों की एक ज़बरदस्त कुमक भेजी गई। जिन्होंने इतना ज़बरदस्त हमला किया कि ख़ुदा की पनाह... फ़ौज ने आते ही अपनी पतली-पतली नीम की छड़ियों से हमारी नंगी टाँगों और बदन पर वो सड़ाके लगाए कि डोंगा और कटोरा फ़ौज मैदान में हथियार फेंक कर पीठ दिखा गई।इस ज़बरदस्त धींगा-मस्ती में कुछ बच्चे इस बुरी तरह से कीचड़ में लत-पत हो गए थे कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो गया था। इन बच्चों को नहला कर कपड़े बदलवाने के लिए नौकरों की मौजूदा तादाद नाकाफ़ी थी, इसलिए पास पड़ोस के बंगलों और कोठियों से नौकर बुलवाए गए और चार आने फ़ी बच्चा के हिसाब से उनसे नहलवाए गए।
'शुज'अ' शाइरी होती है ज़ात के बल परमिरी कुमक पे कोई ख़ानदान थोड़ी है
कुमकکمک
assistance, aid, reinforcement, help
सहायता, मदद, काम में अथवा युद्ध में।
कैफ़-ओ-कुम
यूसूफ़ नाज़िम
हास्य-व्यंग
Shama Jalti Rahi
नॉवेल / उपन्यास
Maliyat-e-Aamma Aur Hamare Aflas Ke Asbab
Muntakhab Afsane
प्रोफ़ अज़ीज़ अहमद
कि़स्सा / दास्तान
Dehi Sanaten Aur Deehat Ki Nai Tameer
Maliyat-e-Aammah
अर्थशास्त्र
गांव के क़रीब कुँएँ के सामने से एक रास्ता खेत की सिम्त गया है, एक तरफ़ गढ़ा है जिसमें खाद जमा है, दूसरी तरफ़ बबूल का पुराना खोखला दरख़्त है जैसे कोई कुहनसाल-ओ-तमग़ा याफ़्ता फ़ौजी जिस पर दो एक शब बेदार बुज़ुर्ग इस तौर से बैठे हुए गर्दो पेश का जायज़ा लेते होते हैं जैसे पहली जंग-ए-अ'ज़ीम के इख्तिताम पर यूरोप के सूरमा शाख़-ए-ज़रीं पर बैठे हुए गर्द-ओ-पेश और नज़दीक...
ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गयाकुमक में तीर तो भेजे कमान भूल गया
“वाह वाह, अभी तो बनाई है हमने, नहीं देते।”, सलमा-बी टका सा जवाब देतीं।“मेरी बच्ची ने कैसा मुँह फोड़ कर माँगा। एक तो वो ख़ुद ही इतनी ग़ैरत-दार है कि कभी किसी चीज़ की तरफ़ आँख उठा कर नहीं देखती। दे-दे।”, बड़ी बेगम कनीज़ की कुमक को फ़ौरन पहुँचतीं।
फिर पस-ए-पस्पाई मेरा हौसला ज़िंदा हुआआसमाँ से फिर कोई ताज़ा कुमक आने को है
जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थीलफ़्ज़ थे लफ़्ज़ों में एहसास की सरदारी थी
यकायक फ़ायर ब्रिगेड की तुंद-ओ-तेज़ आवाज़ आने लगी। मुझे कुछ ताज्जुब सा हुआ। “फ़ायर ब्रिगेड अब जा रहा है? इतनी देर बाद?” फिर मैंने सोचा कि शायद ये मज़ीद कुमक भेजी जा रही है। फ़ायर ब्रिगेड अपने तुंद-ओ-तेज़ शोर के साथ सामने से गुज़रा चला गया। और अब अचानक लोग जाने कहाँ से उबल पड़े थे। जहाँ-तहाँ खड़ी हुई टोलियाँ ख़ौफ़ भरी सरगोशियाँ, तबसरा आराईयाँ। “आग लग गई?...
हर क़दम ताज़ा कुमक मिलती रही अपने ख़िलाफ़मेरा अपना ही अदू मेरे अलावा कौन था
कोई धूल उड़ती थी रास्तों पे न खुल सकावो ग़नीम था कि कुमक ग़ुबार में कौन था
मचा हुआ है बदन में लहू का वावैलाकहीं से कोई कुमक लाओ ज़हर कारी है
लर्ज़िश-ए-लब को ज़बाँ कोई कुमक दे न सकीपूछने पर भी तो एलान-ए-तमन्ना न हुआ
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