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ग़ज़ल
फ़रिश्तो तुम कहाँ तक नामा-ए-आमाल देखोगे
चलो ये नेकियाँ गिन लो कि गठरी खोल दी हम ने
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
जवाब इस का सही देगा कोई तो इस को खोलूँगा
बना कर एक गठरी मैं ने रखी है सवालों की
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
मैं अपने इरादों की गठरी उठाए कहीं जा न पाया
हमेशा ये धड़का रहा महफ़िल-ए-दोस्ताँ खो न जाए