aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "टोकरी"
साइब टोंकी
1919 - 1986
शायर
रौनक़ टोंकवी
1819 - 1890
मुख़्तार टोंकी
लेखक
बासिर टोंकी
born.1911
यास टोंकी
born.1870
हकीम ज़ाकिर टोंकी
मेहदी टोंकी
नाज़िर टोंकी
सय्यद साजिद अली टोंकी
born.1958
क़वी टोंकी
अब्दुर रहीम ईरानी टोंकी
अनुवादक
नईम टोंकी
संपादक
अक्बर शहाबी टोंकी
सुहैल पयामी टोंकी
मोहम्मद सादिक़ बहार टोंकी
मोहसिन, “जिन्नात को रुपयों की क्या कमी? जिस ख़ज़ाने में चाहें चले जाएँ। कोई उन्हें देख नहीं सकता। लोहे के दरवाज़े तक नहीं रोक सकते। जनाब आप हैं किस ख़याल में। हीरे-जवाहरात उनके पास रहते हैं। जिससे ख़ुश हो गए, उसे टोकरों जवाहरात दे दिए। पाँच मिनट में कहो, काबुल...
जिस दिन नतीजा निकला और अब्बा जी लड्डुओं की छोटी सी टोकरी लेकर उनके घर गए। दाऊ जी सर झुकाए अपने हसीर में बैठे थे। अब्बा जी को देख कर उठ खड़े हुए और अंदर से कुर्सी उठा लाए और अपने बोरिए के पास डाल कर बोले, "डाक्टर साहब आप...
सिब्ते ने उस वक़्त अपनी बीवी से बात की जब उसकी बेगम ने मदन को मिसाली शौहर की हैसियत से सिब्ते के सामने पेश किया। पेश ही नहीं किया बल्कि मुँह पे मारा। उसको उठा कर सिब्ते ने बेगम के मुँह पर दे मारा। मालूम होता था किसी ख़ूनैन तरबूज़...
पूछने पर पता चला कि झब्बू से गिनी खाते के मैनेजर ने कुछ डाँट डपट की। इस पर झब्बू ने भी उसे दो हाथ जड़ दिए। इस पर बहुत वावेला मचा और मैनेजर ने अपने बदमाशों को बुला कर झब्बू की ख़ूब पिटाई की और उसे िमल से बाहर निकाल...
अब जान जिस्म-ए-ख़ाकी से तंग आ गई बहुतकब तक इस एक टोकरी मिट्टी को ढोईए
Tazkirah Auliya-e-Hind-o-Pakistan
मुफ़ती वली हसन टोंकी
तज़किरा
हैवानी दुनिया के अजाइबात
विज्ञान
Mutala-e-Akhtar Sheerani
तारीख़-ए-ख़्वाजा-ऐ-ख़वाजगान
सय्यद मोहम्मद ज़ियाउद्दीन शम्सी तहरानी टोंकी
चिश्तिय्या
Fitna-e-Inkaar-e-Hadees
Khooni Ghubbare
कहानी
Pur asrar Faqeer
जासूसी
Hindustani Iqtisadi Masail
Tonk Me Urdu Ka Farogh
साहित्य का इतिहास
Desi Lok Kahaniyan
Qaus-o-Quzah
Aabgeena
सय्यद मोहम्मद टोंकी
लेख
Qalam Goyad
Taza Roti Ki Mahak
अफ़साना
Laghviyaat
इस वाक़े के चंद रोज़ बाद जब मैं कॉलेज से फ़ारिग़ हो कर सलीम के कमरे में दाख़िल हुआ तो क्या देखता हूँ कि फ़िल्मी मुमसिलों की दो तसावीर जो एक अर्से से कमरे की दीवारों पर आवेज़ां थीं और जिन्हें मैं और सलीम ने बहुत मुश्किल के बाद फ़राहम...
इत्तफ़ाक़ की बात है शाम को छः बजे वो मुझे... स्ट्रीट के नाके पर मूत्री के पास मिल गया। मौसंबियों की ख़ाली टोकरी बाहर रख कर वो पेशाब करने के लिए अंदर गया। मैं भी लपक कर उस के पीछे। धोती खोल ही रहा था कि मैंने ज़ोर से पुकारा,...
मैंने मिस्री सिगरेट केस निकाला और सिगरेट सुलगा कर शाम के आख़िरी... पुरसकूं और अफ़सुरदगी में शराबोर लम्हात में हल्के-हल्के कश लेने लगा। बाग़ में अंधेरा बढ़ रहा था और हवा ज़्यादा मरतूब थी और ज़्यादा ठंडी होगई थी। बालकोनी के नीचे प्लाट में नाशपाती के फूल अपनी टहनियों पर...
वो दोनों गडियाली के जंगल में जीप के किसी कच्चे रास्ते पर बैठ जाते। देवदार के एक टूटे हुए तने पर। पीछे जीप खड़ी होती। सामने एक छोटी सी ढलवान की गहरी और दबीज़ घास। कोई चशमा तक़रीबन बेआवाज़ हो कर बहता था। जंगली फलों पर पानी के क़तरे गिर...
एक शराबी ने जिसके क़दम बहुत ज़्यादा लड़खड़ा रहे थे, अपने मूंछों भरे होंटों से बड़ी भद्दी आवाज़ के साथ एक बोसा नोच कर उस काली वेश्या की तरफ़ उछाला और एक ऐसा फ़िक़रा कसा कि जावेद की सारी हिम्मत पस्त हो गई। कोठे पर बर्क़ी लैम्प की रोशनी में...
उफ़ दुनिया में किसी का भरोसा नहीं। अपनी माँ अगर जान की दुश्मन हो जाएगी। वैसे ही हर वक़्त टोकती रहती हैं। ये ना करो, वो ना करो, इतना ना पढ़ो, इतना ना खेलो, इतना ना जियो। “चाक़ू कहाँ है?” छम्मन मियाँ ने कोहनियों के बल झुक कर पूछा।...
और उनके क़रीब हीरो महरी की बेटी सूत्री ख़ुशी से अपनी बाछें खिलाए ज़ोर-ज़ोर से पंखा झल रही थी। ताई इसरी घर से रंगीन खपची की एक टोकरी लेकर आई थीं जो उनके क़दमों में उनकी पीढ़ी के पास ही पड़ी थी। वो बारी-बारी से सबको दुआएं देती जातीं और...
राजू म्युनिस्पिल्टी की लालटेन के नीचे खड़ी थी और उसे ऐसा महसूस होता था कि औरत के मुतअल्लिक़ उसके जज़्बात अपने कपड़े उतार रहे हैं। राजू की ग़ैर मुतनासिब बांहें, जो काँधों तक नंगी थीं, नफ़रत-अंगेज़ तौर पर लटक रही थीं। मर्दाना बनयान और गोल गले में से उसकी नीम...
जिस तरह भंगन की लड़की को गंदगी का पहला टोकरा उठाते वक़्त घिन नहीं आएगी इसी तरह अपने पेशे का पहला क़दम उठाते वक़्त ऐसी वैश्याओं को भी हिजाब महसूस नहीं होगा। आहिस्ता-आहिस्ता हया और झिजक से मुताल्लिक़ा क़रीब क़रीब तमाम जज़्बात उनमें घिस घिस कर हट जाते हैं... चकले...
हज्जन माँ एक तरफ़ पलंग पर दुपट्टे से अपना मुँह ढाँके गहरी नींद सो रही थीं। उन पर से जो भेड़ें दौड़ीं तो न जाने वो ख़्वाब में किन महलों की सैर कर रही थीं। दुपट्टे में उलझी हुई “मारो... मारो... पकड़ो... पकड़ो...” चीख़ने लगीं। इतने में भेड़ें सूप को...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books