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तंज़-ओ-मज़ाह
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं...
हरी चंद अख़्तर
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ग़ज़ल
सुरूर बाराबंकवी
तंज़-ओ-मज़ाह
अहमद जमाल पाशा
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले