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ग़ज़ल
ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा
काम था जिन का फ़क़त तक़्दीस-ओ-तस्बीह-ओ-तवाफ़
तेरी ग़ैरत से अबद तक सर-निगूँ-ओ-शर्मसार
अल्लामा इक़बाल
मर्सिया
तस्बीह-ए-कुनाँ मुँह में ज़बान आठ पहर है
गोया दहन-ए-ग़ुन्चा में बरग-ए-गुल-ए-तर है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
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नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
पिरोना एक ही तस्बीह में इन बिखरे दानों को
जो मुश्किल है तो इस मुश्किल को आसाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
न कर तक़लीद ऐ जिबरील मेरे जज़्ब-ओ-मस्ती की
तन-आसाँ अर्शियों को ज़िक्र ओ तस्बीह ओ तवाफ़ औला
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बत
बढ़ा तस्बीह-ख़्वानी के बहाने अर्श की जानिब
तमन्ना-ए-दिली आख़िर बर आई सई-ए-पैहम से
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये प्यारी प्यारी चिड़ियाँ फिरती हैं जो चहकती
क़ुदरत ने तेरी उन को तस्बीह-ख़्वाँ बनाया
इस्माइल मेरठी
मर्सिया
बहर-ए-नमाज़ क़ुव्वत की तक़लील करती हैं
तस्बीह हक़ में आप को तहलील करती हैं