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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शिकवा
जुरअत-आमोज़ मिरी ताब-ए-सुख़न है मुझ को
शिकवा अल्लाह से ख़ाकम-ब-दहन है मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रक़ीब से!
जिस की उल्फ़त में भुला रक्खी थी दुनिया हम ने
दहर को दहर का अफ़्साना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
ताज-महल
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
नज़र से दूर मंज़र का सर-ओ-सामान-ए-सर्वत हो
हमारी उम्र का क़िस्सा हिसाब अंदोज़-ए-आनी है
जौन एलिया
नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान
और कुछ देर सितम सह लें तड़प लें रो लें
अपने अज्दाद की मीरास है माज़ूर हैं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दहर में 'मजरूह' कोई जावेदाँ मज़मूँ कहाँ
मैं जिसे छूता गया वो जावेदाँ बनता गया