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ग़ज़ल
बाँधी ज़ाहिद ने तवक्कुल पर कमर सौ बार चुस्त
लेकिन आख़िर बाइस-ए-सुस्ती-ए-हिम्मत खुल गई
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कुछ ऐसी बात हो जो मूजिब-ए-तस्कीन-ए-ख़ातिर हो
वो क्या इक़रार है जो बाइस-ए-आज़ार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
रौज़ा-ए-अक़्दस पे आकर क्यों न ठहरें क़ाफ़िले
बाइ'स-ए-तस्कीन-ए-दिल है आस्ताना आप का
शकील इबन-ए-शरफ़
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नज़्म
ये सराए है
ये भी हिम्मत न हुई पास बिठा के पूछें
दिल ये कहता था कोई दर्द का मारा होगा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये सराए है
ये भी हिम्मत न हुई पास बिठा के पूछें
दिल ये कहता था कोई दर्द का मारा होगा
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चलते हैं कू-ए-यार में है वक़्त-ए-इम्तिहाँ
हिम्मत न हारना दिल-ए-बीमार देखना