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ग़ज़ल
ख़ुद तग़ाफ़ुल ने दिया मुज़्दा-ए-बेदाद मुझे
अल्लाह अल्लाह मिरे नाले भी असर रखते हैं
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
ये ज़ुल्मतों के परस्तार क्या ख़बर होते
मिरी नवा में ब-जुज़ मुज़्दा-ए-सहर क्या था
आल-ए-अहमद सुरूर
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
गिला-ए-ज़ौर न हो शिकवा-ए-बेदाद न हो
इश्क़ आज़ाद है क्यूँ हुस्न भी आज़ाद न हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये किस दयार-ए-अदम में...
ये कस दयार-ए-अदम में मुक़ीम हैं हम तुम
जहाँ पे मुज़्दा-ए-दीदार-ए-हुस्न-ए-यार तो क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
श्री-कृष्णा
रात भादों की अँधेरों थी घटा छाई थी
मुज़्दा-ए-ऐश-ओ-ख़ुशी साथ लगा लाई थी
बिस्मिल इलाहाबादी
ग़ज़ल
मैं हूँ वो बुलबुल-ए-महव-ए-असीरी-ए-बेदाद
रहेगी रूह भी बा'द-ए-फ़ना फ़िदा-ए-क़फ़स