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ग़ज़ल
हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मैं राह-रव-ए-राह-ए-तमन्ना हूँ सितम-गर
हर ज़ख़्म पे बढ़ जाता है कुछ मेरा निशाँ और
जमील अरशद खाँ अरशद
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ग़ज़ल
वामांदा-ए-मंज़िल है जो ऐ राह-रव-ए-शौक़
शायद है तिरा ज़ौक़-ए-तलब ख़ाम अभी तक
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
इब्तिला में हैं सभी राह-रव-ए-मंज़िल-ए-शौक़
किस को फ़ुर्सत कि मिरे पाँव का काँटा देखे
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ऐ राह-रव-ए-राह-ए-जुनूँ भूल न जाना
इस राह में जी जान से हारे भी मिले हैं