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ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक जाऊँ उन को दिखला दूँ
उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामा ख़ूँ-चकाँ अपना
मिर्ज़ा ग़ालिब
मर्सिया
शीरीं-रक्मों में रक़्म उस लब की जुदा है
इक ने शुक्र और एक ने याक़ूत लिखा है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
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नज़्म
जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है
मैं क्या लिखूँ कि जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है
वो आशिक़ी की ज़बाँ में कहीं भी दर्ज नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तंज़-ओ-मज़ाह
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तक़ाज़ा है बहुत
इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत