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ग़ज़ल
वो मुखड़ा गुल सा और उस पर जो नारंजी दो-शाला है
रुख़-ए-ख़ुर्शीद ने गोया शफ़क़ से सर निकाला है
नज़ीर अकबराबादी
शेर
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
गलीम-ए-कोहना में जाड़ा फ़क़ीरों का बसर होगा
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया
क्या क्या हम ने कष्ट कमाए कहाँ कहाँ निरवान लिया
ऐतबार साजिद
नज़्म
ईद की अचकन
अचकन नहीं इस वक़्त अबा और क़बा है
या कोई दो-शाला है जो खूँटी पे टंगा है