aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सँवारे"
नामी निज़ामी
1884 - 1950
लेखक
हम ने सब शेर में सँवारे थेहम से जितने सुख़न तुम्हारे थे
है 'ज़ौक़' की अज़्मत कि दिए मुझ को सहारे'चकबस्त' की उल्फ़त ने मिरे ख़्वाब सँवारे
बाप लर्ज़ां है कि पहुँची नहीं बारात अब तकऔर हम-जोलियाँ दुल्हन को सँवारे जाएँ
ये खुले खुले से गेसू इन्हें लाख तू सँवारेमिरे हाथ से सँवरते तो कुछ और बात होती
फिर तुम्हें रोज़ सँवारें तुम्हें बढ़ता देखेंक्यूँ न आँगन में चमेली सा लगा लें तुम को
तरक़्क़ीपसंद का दौर वो दौर था, जब सारे अदीब- शायर हमारे समाज को बेहतर बनाने की कोशिश में नग़मे बुन रहे थे | यहाँ उस समय के चंद शायर की चंद ग़ज़लें दी जा रही हैं |
अहमद फ़राज़ पिछली सदी के प्रख्यात शायरों में शुमार किए जाते हैं। अपने समकालीन में बेहद सादा और अद्वितीय शैली की वजह से उनकी शायरी ख़ास अहमियत की हामिल है। रेख़्ता फ़राज़ के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर पेश कर रहा है जिसने पाठकों पर जादू ही नहीं किया बल्कि उनके दिलों को मोह लिया । इन शेरों का चुनाव बहुत आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी फ़राज़ के बहुत से लोकप्रिय शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में आपकी राय का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
आँसू पानी के सहज़ चंद क़तरे नहीं होते जिन्हें कहीं भी टपक पड़ने का शौक़ होता है बल्कि जज़्बात की शिद्दत का आईना होते हैं जिन्हें ग़म और ख़ुशी दोनों मौसमों में संवरने की आदत है। किस तरह इश्क आंसुओं को ज़ब्त करना सिखाता है और कब बेबसी सारे पुश्ते तोड़ कर उमड आती है आईए जानने की कोशिश करते हैं आँसू शायरी के हवाले से.
सँवारेسنوارے
embellish, decorate, rectify
सारे सुख़न हमारे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कुल्लियात
दास्ताँ मेरी
इक़बाल हुसैन
आत्मकथा
कश्ती की सवारी
जय श्री पांडे
बाल-साहित्य
सवाद-ए-शाम
ग़ुबार भट्टी
काव्य संग्रह
सारे दिन का थका हुआ पुरुष
सलाहुद्दीन परवेज़
अन्य
गर सहारे न मिलते
ज़ुलेख़ा हुसैन
रोमांटिक
सवाद-ए-मंज़िल
नुशूर वाहिदी
010
ग़ुलाम मुस्तफ़ा नईमी
May, Jun, Jul 2011सवाद-ए-आज़म
कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँकब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे
'ग़ालिब' ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-नाज़देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर को मैं
काम बन जाए अगर ज़ुल्फ़-ए-जुनूँ बन जाएइस लिए इस को सँवारो कि सँवारे जाओ
की ये दीवार बुलंद, और बुलंद, और बुलंदबाम ओ दर और, ज़रा और सँवारे हम ने
बिगाड़ पर है जो तन्क़ीद सब बजा लेकिनतुम्हारे हिस्से के जो काम थे सँवारे भी
दिल-ए-बर्बाद ये ख़याल रहेउस ने गेसू नहीं सँवारे हैं
ऐ सहारों की ज़िंदगी वालोकितने इंसान बे-सहारे हैं
ये हँसता हुआ चाँद ये पुर-नूर सितारेताबिंदा ओ पाइंदा हैं ज़र्रों के सहारे
एक मौहूम तमन्ना के सहारे निकलेचाँद के साथ तिरे हिज्र के मारे निकले
आज कितनी आस भरी निगाहें कुबरा की माँ के मुतफ़क्किर चेहरे को तक रही थीं, छोटे अर्ज़ की टोल के दो पाट तो जोड़ लिए गए थे, मगर अभी सफ़ेद गज़ी का निशान ब्योंतने की किसी को हिम्मत न पड़ी थी। काट-छाँट के मुआमले में कुबरा की माँ का मर्तबा...
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