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ग़ज़ल
दुनिया में कोई मोल न था 'शौक़' का लेकिन
क़िस्मत है जो संग-ए-दर-ए-जानाना बना है
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
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ग़ज़ल
'सुहैल' अब किस को सज्दा कीजिए हैरत का आलम है
जबीं ख़ुद बन गई संग-ए-दर-ए-जानाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
दिल में हर-वक़्त ख़याल-ए-दर-ए-जानाना है
या'नी का'बे के मुक़द्दर में सनम-ख़ाना है
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
है क्या संग-ए-दर-ए-जानाँ उसी का दिल समझता है
जो दीवाना तिरी चौखट को मुस्तक़बिल समझता है
हनीफ़ दानिश इंदौरी
ग़ज़ल
जुनूँ की राह में पहले दर-ए-जानाना आता है
फ़राग़त है फिर इस के बाद ही वीराना आता है
सुहैल काकोरवी
ग़ज़ल
नियाज़-ओ-इज्ज़ मुझे नाज़-ए-संग-ए-दर से मिला
ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ मिला जो तिरी नज़र से मिला
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
तू उन के दर पे 'ज़ाहिद' आ गया तो सोचता क्या है
झुका दे सर कहाँ संग-ए-दर-ए-जानाना मिलता है
ज़ाहिद अल-एहसानी लोहारवी
ग़ज़ल
किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे
यही पत्थर पए तावीज़-ए-तुर्बत ले के उट्ठेंगे