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ग़ज़ल
राहिल हूँ मुसलमान ब-साद-नारा-ए-तकबीर
ये क़ाफ़िला ये बाँग-ए-दरा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
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नज़्म
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
कुछ भी तो ज़िंदगी में 'साद' नहीं बदला तिरी
सुब्ह जो होता है होता है वही शाम के बा'द
सिद्धार्थ सैनी साद
ग़ज़ल
वही हिज्र रात की बात है वही चाँद-तारों का साथ है
जो फ़िराक़ से हुआ आश्ना उसे आरज़ू-ए-विसाल क्या
सादुल्लाह शाह
मर्सिया
बाला उसे समझे हैं सर्द ही का वो कुफ़्फ़ार
अब्रू जो हर इक मोय मुबारक से भरा है