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ग़ज़ल
न तुमतराक़ को ने कर्र-ओ-फ़र को देखते हैं
हम आदमी के सिफ़ात ओ सियर को देखते हैं
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
अक़्ल है तेरी सिपर इश्क़ है शमशीर तिरी
मिरे दरवेश ख़िलाफ़त है जहाँगीर तिरी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मीर तक़ी मीर
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
ये ज़ालिम तीसरा पैग इक अक़ानीमी बिदायत है
उलूही हर्ज़ा-फ़रमाई का सिर्र-ए-तूर-ए-लुक्नत है
जौन एलिया
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
ख़ुदी में डूब जा ग़ाफ़िल ये सिर्र-ए-ज़िंदगानी है
निकल कर हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से जावेदाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ए'तिराफ़
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर डाली है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था