aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सुरंग"
सुरज पंडित
अनुवादक
कैलाश सारंग
पर्काशक
विलास सारंग
लेखक
दारुल उलूम महमुदिया, सुरत, गुजरात
सुल्तान शेर शाह सुरी पब्लीकेशन्ज़, सासाराम
मुसव्विर सुराग़
सारंग पब्लिकेशंस, लाहौर
सबरंग बुक डिपो, रांची
''मैं धूप में जल के इतना काला नहीं हुआ थाकि जितना इस रात मैं सुलग के सियह हुआ हूँ''
निचला रहा न सोज़-ए-दरूँ इंतिज़ार मेंइस आग ने सुरंग लगा दी मज़ार में
किसी ग़रीब की बरसों की आरज़ू हो जाऊँमैं इस सुरंग से निकलूँ तो आब-जू हो जाऊँ
वो सुर्ख़ हो गई, “मा’लूम है हमारे यहाँ मग़रिब में इस जुमले के क्या मअ’नी होते हैं?” “मा’लूम है।”, उसने ज़रा बे-पर्वाई से कहा। लेकिन उसके लहजे की ख़फ़ीफ़ सी बे-पर्वाई को तमारा ने शिद्दत से महसूस किया। अब नुसरतउद्दीन ने अलमारी में से एक छोटा सा एल्बम निकाला और...
लम्बी सुरंग सी है तिरी ज़िंदगी तो बोलमैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा
सुर्ख़-ओ-सियाह
बलराज मेनरा
अफ़साना
अातिश-ए-रफ़्ता का सुराग़
मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
नॉवेल / उपन्यास
सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर
साक़ी फ़ारुक़ी
कुल्लियात
सुर्ख़ मौत
एडगर एलन पो
कहानी
ग़ालिब-ए-सदरंग
सय्यद क़ुदरत नक़वी
मज़ामीन / लेख
सुराग़-ए-ज़िंदगी
सय्यद अहमद ईसार
आत्मकथा
Be-Gunah Qaidi
सात सुरों की मीठी हलचल
ग़यास अंजुम
काव्य संग्रह
सुर्ख़ हाशिए
नरेश कुमार शाद
Shumara Number-004
महबूब सिद्दीक़ी
Mar 1957सुराग़ रसाँ
इनकी के देस में
कितने सुरज
फ़ारूक़ इंजीनियर
शाइरी
Shumara Number-001
Dec 1956सुराग़ रसाँ
Shumara Number-002
इस्लाम हुसैन
Jan 1957सुराग़ रसाँ
Dec 1955सुराग़ रसाँ
बतौर-ए-ख़ास हमें मुख़ातिब कर के फ़रमाया, वल्लाह ये सड़क तो हार्ट-अटैक के कार्डियो ग्राम की मानिंद है, हर नागहानी मोड़ पर उन्हें बेगम की मांग उजड़ती हुई दिखाई देती और वो मुड़ मुड़ के सड़क को देखते जो पहाड़ के गिर्द साँप की तरह लिपटती, बल खाती चली गई थी।...
"वो दिन याद है ना बशीर भाई आपको कि आप नमाज़ के लिए उठे थे और मुझसे पूछ रहे थे कि आज इतनी सवेरे कैसे उठ बैठे, अस्ल में उस रात मुझे नींद नहीं आई, जाने क्या हो गया, रात भर करवटें लेते गुज़र गई और तरह-तरह के ख़्याल, वसवसे,...
चलते-चलते फिर उसी अंदाज़ से रफ़्तार का धीमा पड़ना गोया पहिये चलते-चलते थक गए हैं, अँधेरे डिब्बे में फैलती हुई रौशनी की पेटियाँ, मुसाफ़िरों, क़ुलियों और फेरी वालों का शोर, नींद के नशे से चौंकती हुई कोई आवाज़ "जंक्शन है?" और ग़नूदग़ी में डूबता हुआ कोई अधूरा फ़िक़रा "नहीं कोई...
बिछाई जाने वाली बारूदी सुरंगकौन सी सर-ज़मीन पे तय्यार होती
नवाब ताऊस यार जंग अचकानी ने तजवीज़ पेश की कि तालिब-इ'ल्म लड़कियों के लिए एक ख़ास बोर्डिंग हाऊस ता'मीर किया जाए। जिसकी दीवारें दो सौ बीस गज़ ऊँची हों और इस बोर्डिंग से लेकर लेक्चर के कमरों तक एक सुरंग बनाई जाए जिसके ज़रिए' सलमा सहाफ़ी लेक्चर सुनने जाया करे।...
मुक़द्दस पहाड़ी के दामन में अलबसीन का मोरश मुहल्ला धूप में सफ़ेद हो रहा था। क़दमों में दरयाए हद्रा के पानी थे। सामने जबल सलीक़ा पर सुर्ख़ पत्थर का मोजिज़ा, क़सर-ए-अलहमरा की गर्मी में फुंक रहा था... मगर लारनज़ो इन सबसे ला-ताल्लुक़ मुर्दा आँखें खोले झूलता रहा। शारेअ चानपीर के...
जो अंधेरे में बारिश के बादनिकलने वाली बैर-बहोटियों की तरह सुर्ख़ हो जाती है
वो ये सुनकर बहुत हंसे और बोले कि "सारी उम्र में तू ही आज पहला मुर्दा ऐसा मिला है जो हमें बहका कर ख़ुदा से मुनहरिफ़ करना चाहता है। अहमक़ तुझे नहीं मालूम कि हमारी तमाम हरकतें मशीन की तरह हैं और हमको सोचने का इख़्तियार है, न इसके इलावा...
सुबह सात बजे एशियाड बस अड्डे पर मिलना तय पाया। उसने माँ से कह दिया कि वो चंद सहेलियों के साथ पिकनिक पर जा रही है। शाम तक लौट आएगी। माँ ने ख़ुशी ख़ुशी इजाज़त दे दी। वो रात-भर बिस्तर पर करवटें बदलती रही। थोड़ी देर के लिए आँख लग...
ख़्वाहिश के कारोबार से बचना मुहाल हैउतरेगा तू भी साथ मिरे इस सुरंग में
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