aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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शोएब बिन अज़ीज़
born.1950
शायर
शम्स तबरेज़ी
1185 - 1248
लेखक
सलाम बिन रज़्जाक़
1941 - 2024
यूसुफ़ बिन मोहम्मद
born.1991
एवज़ सईद
1933 - 1995
हैरत बिन वाहिद
died.2004
मोहम्मद बिल हसन शरार
अबू बकर मोहम्मद बिन ज़करिया राज़ी
गुस्ताव ले बॉन
1841 - 1931
अबू हनीफ़ा
699 - 767
Shaikh Ali Hujweri
अहमद बिन मोहम्मद
1448 - 1517
मन्सूर बिन चाँद मुहम्मद
सय्यद बाक़र बिन सय्यद उस्मान
हामिद बिन शब्बीर
सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस कीजो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैंहम ग़रीबों की आन-बान में क्या
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूदफिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है
कभी तो किश्त-ए-ज़ाफ़राँकभी उदासियों का बन
तू भी हीरे से बन गया पत्थरहम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
रचनाकार की भावुकता एवं संवेदनशीलता या यूँ कह लीजिए कि उसकी चेतना और अपने आस-पास की दुनिया को देखने एवं एहसास करने की कल्पना-शक्ति से ही साहित्य में हँसी-ख़ुशी जैसे भावों की तरह उदासी का भी चित्रण संभव होता है । उर्दू क्लासिकी शायरी में ये उदासी परंपरागत एवं असफल प्रेम के कारण नज़र आती है । अस्ल में रचनाकार अपनी रचना में दुनिया की बे-ढंगी सूरतों को व्यवस्थित करना चाहता है,लेकिन उसको सफलता नहीं मिलती । असफलता का यही एहसास साहित्य और शायरी में उदासी को जन्म देता है । यहाँ उदासी के अलग-अलग भाव को शायरी के माध्यम से आपके समक्ष पेश किया जा रहा है ।
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
ये 10 ग़ज़लों का ऐसा संग्रह है जिन्हें प्रसिद्ध गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। ये ग़ज़लें मोहब्बत और इश्क़ के शादीद जज़्बे से भारी हुई हैं। हमारी ये पेशकश आप के लिए ख़ास है। आप यहाँ इन ग़ज़लों को पढ़ भी सकते हैं जिन्हें सिर्फ़ सुनते रहे हैं।
Bahr-ul-Maani
मोहम्मद बिन नसरुद्दीन जाफ़र मक्की हुसैनी
पत्र
Hasan Bin Sabah Ki Jannat
ख़ुर्शीद हाश्मी
ऐतिहासिक
Futooh-ul-Buldan
अहमद बिन यहया
इतिहास
Phool Ban
इबन-ए-नशाती
Al-Fahrist
मोहम्मद बिन इस्हाक़ इब्न-ए-नदीम वर्राक़
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अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़
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अल्लामा मोहम्मद बिन उमर अल-वाक़दी
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँअगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा
बिन तुम्हारे कभी नहीं आईक्या मिरी नींद भी तुम्हारी है
तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो अज़ाब मेंऔर इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहींमैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा
कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास मेंजो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मिरे साथ तुम भी चला करो
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनोंन मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगरजंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा
बन जाएँगे ज़हर पीते पीतेये अश्क जो पीते जा रहे हो
पीछे मुड़ कर क्यूँ देखा थापत्थर बन कर क्या तकते हो
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न देमैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
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