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नज़्म
रामायण का एक सीन
देखो ये क़ुदरत-ए-चमन-आरा-ए-रोज़गार
वो अब्र-ओ-बाद ओ बर्फ़ में रहते हैं बरक़रार
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
है अपनी किश्त-ए-वीराँ सरसब्ज़ इस यक़ीं से
आएँगे इस तरफ़ भी इक रोज़ अब्र-ओ-बाराँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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विषय
अबरू
अबरू शायरी
विषय
अब्र
अब्र शायरी
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ग़ज़ल
ये अब्र-ओ-किश्त की दुनिया में कैसे मुमकिन है
कि उम्र-भर की वफ़ा का कोई सिला ही न हो
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
मेरा और उस का इख़्तिलात हो गया मिस्ल-ए-अब्र-ओ-बर्क़
उस ने मुझे रुला दिया मैं ने उसे हँसा दिया
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ख़ाना-ब-दोश
धूप और अब्र-ओ-बार के मारे हुए ग़रीब
ये लोग वो हैं जिन को ग़ुलामी नहीं नसीब
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले