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नज़्म
महादेव-जी का ब्याह
पहले नाँव गणेश का, लीजिए सीस नवाए
जा से कारज सिद्ध हों, सदा महूरत लाए
नज़ीर अकबराबादी
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क़ितआ
क्या ज़िद है कि बरसात भी हो और नहीं भी हो
तुम कौन हो जो साथ भी हो और नहीं भी हो
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं मरने के बाद
उस को क्या रोएँ जो मरता ही नहीं मरने के बाद
गणेश बिहारी तर्ज़
क़ितआ
लम्हा लम्हा मौत को भी ज़िंदगी समझा हूँ मैं
दूसरों की ही मसर्रत को ख़ुशी समझा हूँ मैं