aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अंकित आब
born.1984
शायर
डॉ. ए.बी. अशरफ
लेखक
मोहम्मद अब-उल-शरफ़
सय्यद शाह अब-उल-मआली
इविव इंदरिक
मतबा आब-ए-हयात, सियालकोट
पर्काशक
अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्म को तुझ से हैं उमीदेंये आख़िरी शम'एँ भी बुझाने के लिए आ
ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़तू नहाती है अब भी बान में क्या
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजेऔर भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंजिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
शेर-ओ-अदब के समाजी सरोकार भी वाज़ेह रहे हैं और शायरों ने इब्तिदा ही से अपने आप पास के मसाएल को शायरी का हिस्सा बनाया है अल-बत्ता एक दौर ऐसा आया जब शायरी को समाजी इन्क़िलाब के एक ज़रिये के तौर पर इख़्तियार किया गया और समाज के निचले, गिरे पड़े और किसान तबक़े के मसाएल का इज़हार शायरी का बुनियादी मौज़ू बन गया। आप इन शेरों में देखेंगे कि किसान तबक़ा ज़िंदगी करने के अमल में किस कर्ब और दुख से गुज़र्ता है और उस की समाजी हैसियत क्या है।किसानों पर की जाने वाली शायरी की और भी कई जहतें है। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
सूफ़ीवाद ने उर्दू शायरी को कई तरह से विस्तार दिया है और प्रेम के रंगों को सूफ़ीयाना-इश्क़ के संदर्भों में स्थापित किया है। असल में इशक़ में फ़ना का तसव्वुर, इशक़-ए-हक़ीक़ी से ही आया है। इसके अलावा हमारे जीवन की स्थिरता, हमारी सहिष्णुता और मज़हबी कट्टरपन की जगह सहनशीलता का परिचय आदि ने सूफ़ीवाद के माध्यम से भी उर्दू शायरी को माला-माल किया है। दिलचस्प बात ये है कि तसव्वुफ़ ने जीवन के हर विषय को प्रभावित किया जिसके माध्यम से शायरों ने कला की अस्मिता को क़ायम किया। आधुनिक युग के अंधकार में सूफ़ीवाद से प्रेरित शायरी का महत्व और बढ़ जाता है।
ख़ामोशी को मौज़ू बनाने वाले इन शेरों में आप ख़ामोशी का शोर सुनेंगे और देखेंगे कि अलफ़ाज़ के बेमानी हो जाने के बाद ख़ामोशी किस तरह कलाम करती है। हमने ख़ामोशी पर बेहतरीन शायरी का इन्तिख़ाब किया है इसे पढ़िए और ख़ामोशी की ज़बान से आगाही हासिल कीजिए।
Aab-e-Gum
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
गद्य/नस्र
Aab-e-Rawan
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
Agar Ab Bhi Na Jage To
शम्श नवेद उसमानी
अनुवाद
Urdu Stage Drama
नाटक इतिहास एवं समीक्षा
Aab-e-Hayat
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
इतिहास
आब-ए-हयात
Aab-e-Kausar
शैख़ मोहम्मद इकराम
इस्लामिक इतिहास
Ab Tak (Kulliyat-e-Ghazal)
कुल्लियात
Aab-e-Hayat Ka Tanqeedi Aur Tahqeeqi Mutala
सय्यद सज्जाद
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
महिलाओं द्वारा अनुदित
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बतअब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
अब उस की याद रात दिननहीं, मगर कभी कभी
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन मेंयहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसीअब किसी बात पर नहीं आती
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँअब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
अब के गर तू मिले तो हम तुझ सेऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद हैहम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
निघरे क्या हुए कि लोगों परअपना साया भी अब तो भारी है
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