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ग़ज़ल
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
नज़्म
इतना मालूम है!
''आँख में पड़ गया कुछ'' कह के ये टाला होगा
और घबरा के किताबों में जो ली होगी पनाह