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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
पीर-ए-गर्दूं ने कहा सुन के कहीं है कोई
बोले सय्यारे सर-ए-अर्श-ए-बरीं है कोई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
हरम रुस्वा हुआ पीर-ए-हरम की कम-निगाही से
जवानान-ए-ततारी किस क़दर साहब-नज़र निकले
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना
मिरा ज़ौक़ उन की चाहत मिरा शौक़ उन पे मरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मिरी ज़ीस्त पर मसर्रत कभी थी न है न होगी
कोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं
हाँ बे-कल बे-कल रहता है हो पीत में जिस ने जी हारा
पर शाम से ले कर सुब्ह तलक यूँ कौन फिरेगा आवारा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दीन से दूर, न मज़हब से अलग बैठा हूँ
तेरी दहलीज़ पे हूँ, सब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
मैं तो जब जानूँ कि भर दे साग़र-ए-हर-ख़ास-ओ-आम
यूँ तो जो आया वही पीर-ए-मुग़ाँ बनता गया