ज़हीर काश्मीरी
ग़ज़ल 39
नज़्म 1
अशआर 30
आह ये महकी हुई शामें ये लोगों के हुजूम
दिल को कुछ बीती हुई तन्हाइयाँ याद आ गईं
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हमें ख़बर है कि हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब
हमारे बाद अंधेरा नहीं उजाला है
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फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे
बुत को यूँ पूज रहे हैं कि ख़ुदा हो जैसे
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