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शायरी के अनुवाद1
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल 137
अशआर 161
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते
कुछ और थक गया हूँ आराम करते करते
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झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए
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यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
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ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए
ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए
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हास्य शायरी 4
शायरी के अनुवाद 1
पुस्तकें 28
चित्र शायरी 33
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है परिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है तुम्हारे शहर के सारे दिए तो सो गए कब के हवा से पूछना दहलीज़ पे ये कौन जलता है अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा आग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा पी मिरे यार तुझे अपनी क़सम देता हूँ भूल जा शिकवा गिला हाथ मिला जाम उठा हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा एक पल भी कभी हो जाता है सदियों जैसा देर क्या करना यहाँ हाथ बढ़ा जाम उठा प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ मय-कदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा
अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है तो अपना काम पहले से भी मुश्किल होने वाला है हवा शाख़ों में रुकने और उलझने को है इस लम्हे गुज़रते बादलों में चाँद हाइल होने वाला है असर अब और क्या होना था उस जान-ए-तग़ाफ़ुल पर जो पहले बेश ओ कम था वो भी ज़ाइल होने वाला है ज़ियादा नाज़ अब क्या कीजिए जोश-ए-जवानी पर कि ये तूफ़ाँ भी रफ़्ता रफ़्ता साहिल होने वाला है हमीं से कोई कोशिश हो न पाई कारगर वर्ना हर इक नाक़िस यहाँ का पीर-ए-कामिल होने वाला है हक़ीक़त में बहुत कुछ खोने वाले हैं ये सादा-दिल जो ये समझे हुए हैं उन को हासिल होने वाला है हमारे हाल-मस्तों को ख़बर होने से पहले ही यहाँ पर और ही कुछ रंग-ए-महफ़िल होने वाला है चलो इस मरहले पर ही कोई तदबीर कर देखो वगर्ना शहर में पानी तो दाख़िल होने वाला है 'ज़फ़र' कुछ और ही अब शो'बदा दिखलाइए वर्ना ये दावा-ए-सुख़न-दानी तो बातिल होने वाला है