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ग़ज़ल 80
शेर 72
एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना
और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में
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पुस्तकें 7
चित्र शायरी 24
थम गया दर्द उजाला हुआ तन्हाई में बर्क़ चमकी है कहीं रात की गहराई में बाग़ का बाग़ लहू रंग हुआ जाता है वक़्त मसरूफ़ है कैसी चमन-आराई में शहर वीरान हुए बहर बयाबान हुए ख़ाक उड़ती है दर ओ दश्त की पहनाई में एक लम्हे में बिखर जाता है ताना-बाना और फिर उम्र गुज़र जाती है यकजाई में उस तमाशे में नहीं देखने वाला कोई इस तमाशे को जो बरपा है तमाशाई में
आज रो कर तो दिखाए कोई ऐसा रोना याद कर ऐ दिल-ए-ख़ामोश वो अपना रोना रक़्स करना कभी ख़्वाबों के शबिस्तानों में कभी यादों के सुतूनों से लिपटना रोना तुझ से सीखे कोई रोने का सलीक़ा ऐ अब्र कहीं क़तरा न गिराना कहीं दरिया रोना रस्म-ए-दुनिया भी वही राह-ए-तमन्ना भी वही वही मिल बैठ के हँसना वही तन्हा रोना ये तिरा तौर समझ में नहीं आया 'मुश्ताक़' कभी हँसते चले जाना कभी इतना रोना
कैसे उन्हें भुलाऊँ मोहब्बत जिन्हों ने की मुझ को तो वो भी याद हैं नफ़रत जिन्हों ने की दुनिया में एहतिराम के क़ाबिल वो लोग हैं ऐ ज़िल्लत-ए-वफ़ा तिरी इज़्ज़त जिन्हों ने की तज़ईन-ए-काएनात का बाइस वही बने दुनिया से इख़्तिलाफ़ की जुरअत जिन्हों ने की आसूदगान-ए-मंजि़ल-ए-लैला उदास हैं अच्छे रहे न तय ये मसाफ़त जिन्हों ने की अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील वो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की