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अहमद सलमान
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ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मेरी उम्मीदों से लिपटे रहे अंदेशों के साँप
उम्र हर दौर में कटती रही चंदन बन के
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
नज़्म
रामायण का एक सीन
डसता न साँप बन के मुझे शौकत-ओ-हशम
तुम मेरे लाल थे मुझे किस सल्तनत से कम
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
सारे सपेरे वीरानों में घूम रहे हैं बीन लिए
आबादी में रहने वाले साँप बड़े ज़हरीले थे