aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".uraq"
इरुम ज़ेहरा
born.1982
शायर
अत्बाफ अबरक
लेखक
सादिक़ा नवाब सहर
अब्बास इराक़ी
इरम लखनवी
1910 - 1967
राबिया पिन्हाँ
1906 - 1972
सय्यदा शान-ए-मेराज
born.1948
नुसरत चौधरी
born.1955
शबीना आरा
born.1990
मुज़फ़्फ़र ईरज
1944 - 2021
जहाँ आरा तबस्सुम
born.1970
साइमा इरम
शिव नारायण आराम
1833 - 1898
फ़ारूक़ ज़मन
born.1969
अरजुमन्द आरा
होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा रेज़ाजैसे उड़ते हुए औराक़-ए-परेशाँ जानाँ
आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानीजब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
देख कर फूल के औराक़ पे शबनम कुछ लोगतिरा अश्कों भरा मक्तूब समझते होंगे
सारे औराक़-ए-गुल बिखर जाएँनाज़-पर्वर्दा बे-नवा मजबूर
ऐ इश्क़-ए-नाला-कश तिरी ग़ैरत को क्या हुआहै है अरक़ अरक़ वो तन-ए-नाज़नीं रहे
ख़ुदा-ए-सुख़न कहे जाने वाले मीर तक़ी मीर उर्दू अदब का वो रौशन सितारा हैं, जिन्होंने नस्ल-दर-नस्ल शायरों को मुतास्सिर किया. यहाँ उनकी ज़मीन पर लिखी गई चन्द ग़ज़लें दी जा रही हैं, जो मुख़्तलिफ़ शायरों ने उन्हें खिराज पेश करते हुए कही.
ज़ीशान साहिल उर्दू कविता के एक अनोखे और संवेदनशील लहजे के कवि हैं, जिन्होंने आधुनिक दौर की जटिल भावनाओं को सरल लेकिन गहरे रूपकों के माध्यम से व्यक्त किया है। उनकी कविताओं में एक मौन विरोध, एक तहदार आलोचना, और एक बौद्धिक कोमलता पाई जाती है जो पाठक को झकझोर देती है। उनके यहाँ दुख, ख़ामोशी और समय जैसे विषयों का सौंदर्यपूर्ण चित्रण मुख्य रूप से मिलता है।
मिर्ज़ा ग़लिब ने कई पीढ़ियों के शायरों को मुतास्सिर किया है| शायर उनके मज़ामीन, उस्लूब और ज़बान से काफ़ी कुछ सीखते रहे | यही वजह है कि शायरों ने उनकी ज़मीन में कई ग़ज़लें कही और अपना ख़िराज पेश किया | हम ऐसी ही चंद ग़ज़लें आपके साथ आपके साथ साझा कर रहे हैं |
डाकڈاک
the post, mail
राक़راق
an enchanter
रुकرک
stop
दो-इकدو اک
two, one
Auraq-e-Karbala
सय्यद इक़बाल हुसैन काज़मी
मर्सिया
Auraq-e-Hayat
शाह इमरान हसन
Jadeed Nazm Nubmer: Shumara Number-007,008
वज़ीर आग़ा
औराक़
Auraq-e-Musawwar
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
भारत का इतिहास
Auraq-ul-Aruz
मोहम्मद ग़यासुद्दीन
अनुवाद
Tareekh ke Gumshuda Auraq
नियाज़ फ़तेहपुरी
अफ़साना
Jamia Millia Islamia-Auraq-e-Musavvar
शम्सुल हक़ उस्मानी
जामिया,नई दिल्ली
Angrezi Hukoomat Aur Iraq-e-Arab
मुंशी मुश्ताक़ अहमद
इस्लामिक इतिहास
Tareekh-e-Khandesh Ke Bikhre Auraq
अकबर रहमानी
Auraq-e-Maani
मिर्ज़ा ग़ालिब
पत्र
Aurat
सिमोन द बोउआर
सामाजिक मुद्दे
Auraq-e-Gumgashta
रहीम बख़श शाहीन
आलोचना
मोहम्मद अली: ज़ाती डाइरी के चंद औराक़
अब्दुल माजिद दरियाबादी
Shumara Number-007,008
सज्जाद नक़वी
Aurat Ek Nafsiyati Mutala
पोंछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दोसुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं
पहुँचूँगा सेहन-ए-बाग़ में शबनम-रुतों के साथसूखे हुए गुलों में अरक़ छोड़ जाऊँगा
ख़लिश दीमक-ज़दा औराक़ पर बोसीदा सतरों का ज़ख़ीरा हैख़ुम्मार-ए-वस्ल तपती धूप के सीने पे उड़ते बादलों की राएगाँ बख़्शिश!
किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रान जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले
पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दोसुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं
मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिएक़तरे जो थे मिरे अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
रिसते हुए दिल के ज़ख़्मों को दुनिया से छुपाना खेल नहींऔराक़-ए-नज़र से जल्वों की तहरीर मिटाना खेल नहीं
ज़िंदगी अपनी किताबों में छुपा ले वर्नातेरे औराक़ के मानिंद बिखर जाऊँगा
अभी हम ख़ूबसूरत हैंहमारे जिस्म औराक़-ए-ख़िज़ानी हो गए हैं
दिल मत लगा रुख़-ए-अरक़-आलूद यार सेआईने को उठा कि ज़मीं नम बहुत है याँ
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