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ग़ज़ल
जुज़ दिल सुराग़-ए-दर्द ब-दिल-ख़ुफ़्तगाँ न पूछ
आईना अर्ज़ कर ख़त-ओ-ख़ाल-ए-बयाँ न पूछ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कुल्लियात
जाने दे मत इस क़दर अब ज़ुल्फ़-ओ-ख़त्त-ओ-ख़ाल देख
हाल कुछ भी तुझ में है ऐ 'मीर' अपना हाल देख
मीर तक़ी मीर
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शेर
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँ
ग़म-ए-इश्क़ पर जो 'अनवर' कोई सेमिनार होता
अनवर मसूद
नज़्म
बस ये बला-ए-इश्क़
या तो ख़ुदा हसीनों को कुछ ख़त्त-ओ-ख़ाल दे
वर्ना उन्हें ख़ुदाई से बाहर निकाल दे
ज़रीफ़ जबलपूरी
ग़ज़ल
ख़द्द-ओ-ख़ाल-ए-हसरत-ओ-अरमाँ बदलना है मुझे
सरहद-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-दिल से निकलना है मुझे
जगदीश मेहता दर्द
शेर
फ़िलफ़िल-ए-ख़ाल-ए-मलाहत के तसव्वुर में तिरे
चरचराहट है कबाब-ए-दिल-ए-बिरयान में क्या