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ग़ज़ल
जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया
अच्छी दीदार की हसरत थी कि मरने न दिया
शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश
ग़ज़ल
जान आँखों में रही जी से गुज़रने न दिया
अच्छी दीदार की हसरत थी कि मरने न दिया
शैख़ अब्दुल लतीफ़ तपिश
ग़ज़ल
दिल उन की मोहब्बत का जो दीवाना लगे है
ये ऐसी हक़ीक़त है जो अफ़्साना लगे है
अब्दुल रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराईची
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ग़ज़ल
मुझे जैसे दो-आलम मिल गए जब मिल गई 'शारिक़'
वो इक साअ'त मोहब्बत की जो उस के ग़म में गुज़री है
शारिक़ मेरठी
ग़ज़ल
जिस ने बख़्शा था मुझे दर्द-ए-मोहब्बत 'शारिक़'
उस नज़र से भी इलाज-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ न हुआ
शारिक़ मेरठी
नज़्म
शैख़ सलाहुद्दीन
लपेटा था नासिर जब जब मुँह सोचा मैं ने
मोहब्बत ही कमज़ोर थी आप की जो नहीं रोक पाई उसे शैख़ साहब
मोहम्मद हनीफ़ रामे
ग़ज़ल
'अजाइब शग़्ल में थे रात तुम ऐ शैख़ रहमत है
मैं उस रीश-ए-बुलंद और दामन-ए-कोताह के सदक़े