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नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
ख़ाम है जब तक तू है मिट्टी का इक अम्बार तू
पुख़्ता हो जाए तू है शमशेर-ए-बे-ज़िन्हार तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उमीद
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जैसे सब लिखते रहते हैं ग़ज़लें नज़्में गीत
वैसे लिख लिख कर अम्बार लगा सकता था मैं