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ग़ज़ल
जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिए हैं सुहागन ने
वो पर्बत से टकरा कर बरस चुका सहराओं में
बशीर बद्र
हिंदी ग़ज़ल
भूक है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आज-कल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ
दुष्यंत कुमार
नज़्म
ख़ातून-ए-मशरिक़
आख़िर इस अंदाज़ पर रहमत को प्यार आ ही गया
मय-कदे पर झूम कर अब्र-ए-बहार आ ही गया
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
तू अपने ही मआल-ए-सोज़-ए-ग़म पर ग़ौर कर पहले
तुझे इस से नहीं कुछ बहस परवाने पे क्या गुज़री