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नज़्म
तराना
ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कोई 'आशिक़ किसी महबूबा से!
जैसे बेगाने से अब मिलते हो वैसे ही सही
आओ दो चार घड़ी मेरे मुक़ाबिल बैठो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
आलम-ए-हुस्न ख़ुदाई है बुतों की ऐ 'ज़ौक़'
चल के बुत-ख़ाने में बैठो कि ख़ुदा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमें देखो हमारे पास बैठो हम से कुछ सीखो
हमीं ने प्यार माँगा था हमीं ने दाग़ पाए हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें
जीना कोई खेल नहीं है बैठो तुक की बात करें