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नज़्म
बच्चों की तौबा
हम ने बकरी के बच्चों को कमरों में नचाना छोड़ दिया
नाराज़ न हो अम्मी हम ने हर शौक़ पुराना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
घास चरी है जंगल की मैं जून में दुंबे बकरे की
उन का कुछ ढाला कि बिगाड़ा जिस पर ख़ंजर रानी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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नज़्म
तआरुफ़
थी इक बकरे नुमा बुर्राक़ दाढ़ी उन के चेहरे पर
मगर फिर भी कबड्डी खेलते थे रात को अक्सर
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
ज़रा सोचो
गए बैल सब्ज़ी के ठेले वालों से लड़ जाते
डंडे खा कर गालियाँ बकते दिल की आग बुझाते
असना बद्र
हास्य
क़साई बकरे का गोश्त ले कर सभी हिमाला पे जा चढ़ेंगे
जो उन का पीछा करेगा घिस-पिस के एक मुश्त ग़ुबार होगा
अकबर लाहौरी
ग़ज़ल
ख़ुदा के घर में वीज़ा-कार्ड का सिस्टम नहीं है
क्रेडिट-कार्ड के बकरे की क़ुर्बानी से बचना
खालिद इरफ़ान
नज़्म
शरीर बच्चे
बकरे पे बैठ कर हम गलियों में रोज़ घूमें
चूँ-चूँ करे जो चूज़ा उस को ज़रूर चूमें
ज़फ़र कमाली
नज़्म
क़ुर्बानी के बकरे
क़ामत में बकरा ऊँट की क़ीमत का हम-ख़याल
दिल बैठता है उठते ही क़ुर्बानी का सवाल